दिल्ली : वरिष्ठ संवाददाता
हिंदी फिल्मों के बेहतरीन गीतकार शैलेंद्र के जीवन, उनके फिल्मी और गैर-फिल्मी गीतों के बारे में जानना और पढ़ना चाहते हैं तो जय सिंह की नयी किताब पाठकों को भा रही है. दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में हॉल नं. 5 के स्टाल नं. F-16 पर ये पुस्तक उपलब्ध है. दिल्ली में पुस्तक मेला 1 फरवरी से 9 फरवरी के बीच चलेगा. मशहूर गीतकार इरशाद कामिल ने भूमिका लिखी है. शैलेंद्र के जीवन और लेखन पर आधारित पुस्तक “सजनवा बैरी हो गये हमार” के लेखक जयसिंह फिल्म-समीक्षक और स्तंभकार हैं. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हुई हैं, भारतीय सिनेमा का सफरनामा, सिनेमा बीच बाजार और जीरो माइल अलीगढ़. उन्होंने विभिन्न विषयों की सौ से अधिक पुस्तकों का संपादन किया है और एक लघु फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी. वह भारतीय सूचना सेवा से संबद्ध हैं और ‘रोज़गार समाचार’ में बतौर सीनियर संपादक कार्यरत हैं. लेखक जयसिंह जी ने गीतकार शैलेंद्र का जीवन अपने नज़रिए से देखा है. इन्होंने शैलेंद्र नाम के व्यक्ति और गीतकार, दोनों तक पहुंचने की कोशिश की है.
हिंदी फिल्मों के बेहतरीन गीतकार शैलेंद्र के बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा कि हिंदी के एक बड़े विद्वान और आलोचक रहे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, महान गीतकार शैलेंद्र को हिंदी सिने जगत का चर्चित नाम थे. कुछ अन्य विद्वानों ने तो शैलेंद्र को हिंदी फिल्मों का बादलेयर और मलार्मे कहकर भी पुकारा। स्वयं राजकपूर उन्हें पुश्किन कहकर पुकारते थे. शैलेंद्र ने जीवन के हर रंग को अपने गीतों में स्वर दिया. फिर चाहे वे प्रेम गीत हों, जनता की समस्याओं को उभारते नगमें हों या फिर फिल्मकार द्वारा दी गयी सिचुएशन को शब्द देना हो. शैलेंद्र हर परीक्षा पर खरे उतरे. शैलेंद्र अपने पीछे साहित्य की कोई विरासत लेकर नहीं आये थे. कहने का अर्थ यह कि उनकी पृष्ठभूमि बहुत साहित्यिक नहीं थी. वह इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से अवश्य जुड़े थे और यही वजह है कि उनके भीतर एक जनगीतकार के तेवर एकदम साफ नजर आते थे.
फिल्म के चर्चित गाने के गीतकार भी शैलेन्द्र ही हैं : ये रात भीगी-भीगी, ये मस्त फ़िज़ाएँ, उठा धीरे-धीरे वो चाँद प्यारा-प्यारा और सजन रे झूठ मत बोलो, ख़ुदा के पास जाना है जैसे सफल गानों के गीतकार शैलेंद्र ही हैं, जिनके कायल पुरानी पीढ़ी से लेकर युवा पीढी भी है.
फिल्म तीसरी कसम के गीत, सजन रे झूठ मत बोलो, ख़ुदा के पास जाना गाने में कितने सरल बोल हैं, लेकिन क्या असर है. लगता है जैसे कोई साधु या जोगी जीवन की सच्चाई को अपने फक्कड और बेगाने अंदाज में बयां कर रहा हो. निर्गुण का रंग लिए इस गीत में शैलेंद्र ने जिन फ्रेज या शब्दों का इस्तेमाल किया है, वे बिल्कुल आम लोगों के बीच प्रचलित हैं. जैसे, न हाथी है न घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है, बही लिख-लिख के क्या होगा.
आवारा (1951) के सारे गीत काफी लोकप्रिय है. इस फिल्म के शुरुआती हिस्से में एक कमाल का कोरस है, जुलम सहे भारी जनक दुलार. शंकर जयकिशन की संगीत रचना में शैलेंद्र ने क्या बोल पिरोये हैं. बिल्कुल जोगी और साधु के सधुक्कड़ी/फक्कड़ाना अंदाज में है.
गीतकार शैलेंद्र ने एक तरफ आरके बैनर के लिए शंकर जयकिशन के साथ बरसात, आवारा, आह, बूटपालिश, श्री चार सौ बीस, जिस देश में गंगा बहती है, संगम, मेरा नाम जोकर जैसे कालजयी फिल्मों के लिए गीत लिखा. वहीं आके बैनर से अलग भी शंकर जयकिशन के लिए फिल्म दाग, पतिता, उजाला, चोरी चोरी, यहूदी , सीमा, बसंत बहार, राज हठ, हलाकू, कठपुतली, रंगोली, जंगली, अनाडी, असली नक़ली, प्रोफ़ेसर, आम्रपाली, लव मैरिज, हमराही, हरियाली और रास्ता, दिल एक मंदिर, दिल अपना और प्रीत पराई, राजकुमार, गबन , ब्रह्मचारी, तीसरी क़सम, एन इवनिंग इन पेरिस जैसी फिल्मों के लिए गीत रचे. इन फिल्मों के गीत संगीत का जादू आज भी बरकरार है.
सिर्फ शंकर जयकिशन ही नहीं उन्होंने अन्य संगीतकारों के साथ भी क्या कमाल के गीत लिखे. मसलन संगीतकार सलिल चौधरी के लिए फिल्म दो बीघा जमीन, जागते रहो, मधुमती, परख, नौकरी, हाफ़ टिकट, जैसे फिल्म में काम किया.
