डॉ. निशा सिंह
सब कुछ ठीक- ठाक रहा तो बिहार में नीतीश कुमार का कुनबा और मजबूत हो सकता है. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जनता दल यूनाइटेड के साथ विलय का मंच तैयार हो चुका है और 14 मार्च को इसका आधिकारिक ऐलान हो सकता है. उपेंद्र कुशवाहा करीब दो साल बाद फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो जाएंगे. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में 14 मार्च को पटना में रालोसपा का जदयू में विलय होगा. बिहार जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह इस मामले को लेकर ‘डील’ कर रहे हैं. वशिष्ठ नारायण सिंह और उपेंद्र कुशवाहा इस ‘डील’ के बाबत दिल्ली से पटना तक कई राउंड की बातचीत कर चुके हैं.
आपको बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने जदयू के साथ विलय पर पार्टी कार्यकर्ताओं से मंजूरी लेने के लिए 13-14 मार्च को पटना में दो दिवसीय बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा 2020 में मिली हार के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने विलय का फैसला कर लिया है. उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में पार्टी 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में एक भी सीट हासिल करने में विफल रही. बिहार में रालोसपा छोड़ने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. करीब 41 नेताओं ने सामूहिक इस्तीफा देकर आरएलएसपी से नाता तोड़ लिया था. जदयू के रणनीतिकार मानते हैं कि इस संभावित विलय का बिहार की राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि रालोसपा का जदयू के साथ विलय की योजना को लगभग अंतिम रूप दे दिया गया है और इसका राज्य की राजनीति पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. यह विलय राज्य में अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए जदयू की योजनाओं का हिस्सा है. जदयू के पास केवल 43 विधायक हैं और एनडीए सरकार में अभी छोटे भाई की भूमिका में है. 74 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी 2020 के विधानसभा चुनावों में बड़े भाई के रूप में उभरी थी.
पिछले बिहार विधानसभा चुनावों में आरएलएसपी ने एक अलग गठबंधन के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा था, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी शामिल थी. उपेंद्र कुशवाहा ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, मगर रालोसपा एक भी सीट जीत नहीं सकी. नवंबर 2020 में नीतीश कुमार ने लगातार चौथे कार्यकाल के लिए बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. एनडीए ने 243 सीटों वाली मजबूत बिहार विधानसभा में 125 सीटों का बहुमत हासिल किया, जिसमें से बीजेपी ने 74 सीटों पर, जदयू ने 43 सीटों पर जबकि आठ सीटों पर एनडीए के दो अन्य दलों ने जीत हासिल की थी.
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