यूपी विधानसभा चुनाव- 2022 : बीजेपी के लिए नीतीश कुमार क्या ट्रम्प कार्ड बन सकते हैं ?

डॉ. निशा सिंह :

बिहार में बीजेपी और जेडीयू की सरकार चल रही है. दोनों दलों के बीच किसी-न-किसी मद्दे पर शह-मात का खेल चलता रहता है. ताजा मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जातिगत आधार पर जनगणना और पेगासस जासूसी मामले की जांच कराने की मांग उठाने का है. पेगासस जासूसी पर विपक्ष अभी संसद सत्र में लगातार हंगामा कर रही है. जेडीयू (43) की सीटें बीजेपी (74) से कम होने के बाद भी नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी अगर नीतीश को नाराज करती है तो असर बिहार में दिखेगा और दूसरा सियासी प्रभाव आने वाले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है.

नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से हैं, जो यूपी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है.

जेडीयू का यूपी की सियासत में कोई खास आधार नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार जिस कुर्मी समुदाय से आते हैं, वो यूपी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है. बिहार से सटे हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय काफी निर्णायक भूमिका में है. नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय के इकलौते सीएम हैं, जो पिछले डेढ़ दशक के सत्ता की धुरी बने हुए हैं. एनडीए से अकाली दल और शिव सेना के अलग होने के बाद बीजेपी अब जेडीयू से अलग होकर बिहार में अलग-थलग नहीं अभी होना चाहती है. मंत्रिमंडल में शामिल सहयोगी पार्टी के नेता जीतनराम मांझी से लेकर निषाद समुदाय के नेता मुकेश सहनी और जेडीयू भी यूपी में चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस रही है. इसी सिलसिले में दिल्ली में तीन दिन पहले जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यूपी चुनाव लड़ने और जातिगत जनगणना पर पार्टी का स्टैंड पर कायम रहने का प्रस्ताव भी पारित किया गया है. जातिगत जनगणना पर बीजेपी का स्टैंड अलग है. यानी इस मुद्दे पर बीजेपी और जेडीयू आमने सामने हैं.

2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नजर ओबीसी और दलित वोटर पर है.

आपको बता दें कि यूपी की सियासत में बीजेपी 15 साल के बाद साल 2017 में सत्ता में लौटी थी, जिसमें गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित मतदाताओं की अहम भूमिका रही. वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की नजर इसी ओबीसी और दलित वोटर पर है. इन्हें बीजेपी के साथ साधे रखने के लिए पीएम मोदी ने पिछले महीने अपनी कैबिनेट विस्तार में यूपी कोटे से सात मंत्री बनाए है, जिनमें तीन दलित और तीन ओबीसी समाज से हैं. मोदी सरकार ने नीट (NEET) में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने का ऐलान भी कर दिया है. यानी इसे वोट बैंक पर कब्ज़ा जमाने की रणनीति माना जा सकता है. इधर यूपी चुनाव को लेकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी दिल्ली में लालू यादव से मिले और बिहार कि पार्टी जदयू, हम और वीआईपी के चुनाव में उतरने के संकेत पर मंथन किया. लालू यादव ओबीसी के बड़े नेता हैं, जिनका प्रभाव देश भर में है. बदले हालात में अगर यूपी चुनाव में नीतीश कुमार प्रचार करने पहुंचते हैं तो अखिलेश के समर्थन में तेजश्वी यादव और उनकी राजद की टीम भी प्रचार करने उतरेगी.

उत्तर प्रदेश : जातिगत बैंकों पर नजर डालें

उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो इस राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है. यूपी में सवर्ण जातियां 19 प्रतिशत है, जिसमें ब्राह्मण करीब 10 प्रतिशत, राजपूत 6 प्रतिशत और बाकी वैश्य, भूमिहार और कायस्थ हैं. पिछड़े वर्ग की संख्या 39 प्रतिशत है, जिसमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी-कुर्मी-कुशवाहा, सैथवार 12 प्रतिशत, जाट 3 प्रतिशत, मल्लाह 5 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7 प्रतिशत है. इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 25 प्रतिशत हैं और मुस्लिम आबादी 18 प्रतिशत है. कुर्मी-कुशवाहा-सैथवार मिलाकर कुल 12 प्रतिशत वोट हैं, जिस पर बीजेपी की पैनी निगाह है. पूर्वांचल और अवध में करीब 32 विधानसभा सीटें और आठ लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी, पटेल, वर्मा और कटियार मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पूर्वांचल के कम से कम 16 जिलों में कहीं 8 तो कहीं 12 प्रतिशत तक कुर्मी वोटर राजनीतिक समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं.

10 लोकसभा सीटों और तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय का प्रभाव

यूपी में की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी जाति की संत कबीर नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में ज्यादा आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय जीतने की स्थिति में है या किसी को जिताने की स्थिति में है.

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