नई दिल्ली : अशोक प्रियदर्शी
‘अगर हौसला हो तो इंसान उम्र के किसी भी पड़ाव पर कुछ भी कर गुजरता है’. इस कहावत को चरितार्थ किया है राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ने. उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी अत्यंत सक्रिय राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ब्रह्मा कुमारीज संस्था की मुख्य प्रशासिका बनीं. संस्था की मैनेजमेंट कमेटी ने आज औपचारिक रूप में यह घोषणा की. संस्था की पूर्व प्रमुख राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी जी के निधन के बाद यह निर्णय लिया गया. 96 वर्षीया राजयोगिनी दादी रतनमोहनी इससे पूर्व, संस्था की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका के रूप में सेवा दे रही थीं.
दादी रतनमोहिनी जी को ग्लोबल हेड और राजयेागिनी दादी ईशु जी को एडिशनल ग्लेबल हेड नियुक्त किया गया.
राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च, 1925 को हैदराबाद सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ. वे 11 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीज संस्थान के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के सम्पर्क में आईं. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
इतनी अधिक उम्र में भी दादी रतनमोहिनी जी पूरी तरह सक्रिय व फूर्त हैं. यहां तक कि उन्हें संस्था में, “सदा युवा” दादी के रूप में भी संबोधित किया जाता है. वे संस्था के युवा प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा भी हैं. उनकी दिनचर्या प्रात: 3.30 बजे से ब्रह्ममुहूर्त से शुरू होती है और रात्रि 10.00 बजे तक उनकी ईश्वरीय सेवा चलती है. दादी रतनमोहिनी जी संस्थान में बहनों के प्रशिक्षण, पदोन्नति और सेवा नियुक्ति का कार्यभार संभालती हैं.
दादी जी युवाओं में खास तौर पर मानवीय मूल्यों और श्रेष्ठ जीवन कला विकसित करती हैं. दादी जी के प्रेरणा से 46 हजार ब्रह्मा कुमारी बहने संस्था में समर्पित रूप में सेवाप्रदान कर रही हैं. संस्था की स्थापना समय के मूल सदस्य दादी रतनमोहिनी जी के निर्देशन में राष्ट्रीय एकता व अखंडता, भाईचारा, व्यसन मुक्ति, विश्व शांति व धार्मिक सदभावना मुद्दों पर विशाल युवा पदयात्राओं, साइकिल यात्रा, कार रैलियों आदि निकाली गई है. करोड़ो लोगों को भारतीय संस्कृति, योग, आध्यात्मिकता, सात्विक जीवन शैली और नैतिक चरित्र निर्माण की ओर प्रेरित करने की भूमिका रही है.
इसके साथ ही उन्होंने भारत के कोने कोने में तथा विश्व के सभी महाद्वीपों में अपनी अतुलनीय मानवीय सेवाएं प्रदान किए हैं. गीतम विश्व विद्यालय द्वारा डॉक्टरेट उपाधि के साथ-साथ दादीजी देश-विदेश के अनेक सम्मान से विभूषित हैं.
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