Waqf Bill: संसदीय समिति ने अब राज्यों से वक्फ संपत्तियों का ब्योरा मांगा है। सूत्रों के मुताबिक राज्यों से यह भी कहा गया है कि उन संपत्तियों की जानकारी भी दें जिन पर राज्य सरकार या उनकी एजेंसियों का कब्जा है। समिति ने वक्फ बोर्ड के साथ चल रहे कानून विवाद वाली संपत्तियों का भी अपडेट मांगा है।
आपको बता दें कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का जिक्र किया गया है। आपको बता दें कि सच्चर कमिटी ने मुसलमानों की भलाई के लिए की थीं ये प्रमुख सिफारिशें. यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2005 में दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में समिति गठित की थी. वर्ष 2006 में संसद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें मुसलमानों के पिछड़ेपन को उजागर करते हुए उनके उत्थान के लिए कई सिफारिशें की गई थीं. इनमें से कुछ पर अमल हुआ और बहुत सी सिफारिशें आज तक ठंडे बस्ते में हैं.
सूत्रों के अनुसार वक्फ (संशोधन) विधेयक की जांच कर रही संसदीय समिति ने राज्य सरकारों से अनधिकृत कब्जे वाली वक्फ संपत्तियों का ब्योरा मांगा है। सच्चर समिति की रिपोर्ट में कई राज्यों में वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का उल्लेख किया गया था। समिति ने राज्यों से वक्फ अधिनियम की धारा 40 के तहत वक्फ बोर्डों द्वारा दावा की गई संपत्तियों का भी विवरण मांगा है। बता दें कि संसदीय समिति का कार्यकाल अब बजट सत्र के अंतिम दिन तक बढ़ा दिया गया है। संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल हैं.कांग्रेस सरकार ने 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन किया था। इस कानून की धारा 40 पर सबसे अधिक विवाद है। यह धारा वक्फ बोर्डों को यह तय करने का अधिकार देता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं। अब मौजूदा संशोधन विधेयक में इस पर ही अंकुश लगाने की तैयारी है। हालांकि विपक्षी दलों समेत कई मुस्लिम संगठनों ने सरकार के कदम की आलोचना की। उन्होंने विधेयक को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया। 2005 में बनी सच्चर समिति को विभिन्न वक्फ बोर्डों ने अधानिकृत कब्जों की जानकारी दी थी। संसदीय समिति केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के माध्यम से राज्यों से जानकारी जुटा रही है।
अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के मुकाबले शिक्षा में पीछे हैं मुस्लिम
उच्च शिक्षा पर शिक्षा मंत्रालय की अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट (AISHE 2020-21) के मुताबिक उच्च शिक्षा संस्थानों में मुसलमानों का एनरोलमेंट यानी नामांकन अन्य सामाजिक समूहों की तुलना में कम है. मुस्लिम नामांकन 4.6% है तो वहीं ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों का प्रतिनिधित्व क्रमशः 35.8%, 14.2% और 5.8% हैं. शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों का कुल नामांकन 21.1 लाख रहा, जबकि 2020-21 में यह आंकड़ा 19.22 लाख और 2014-15 में 15.34 लाख था, यानी 7 वर्षों में 37.5% की बढ़ोतरी हुई लेकिन कोरोना के दौरान इसमें बड़ी गिरावट आई थी. 2017-18 में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों (ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी) का प्रतिनिधित्व 6.5 लाख था जो 2021-22 में बढ़कर 9.1 लाख हो गया यानी सात सालों में 39.4% की वृद्धि हुई. इन सात सालों में मुस्लिम लड़कियों का एनरोलमेंट 7.13 लाख से 46% बढ़कर 10.4 लाख हो गया, जबकि अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों का नामांकन 3.5 लाख से 35.4% की बढ़ोतरी के साथ 4.73 लाख हो गया.
