मिशन बिहार : नीतीश कुमार ने की घोषणा, सवर्ण आयोग फिर से एक्टिव, बिहार में अगड़ी जातियों के लिए उच्च विकास आयोग बनाया गया

पटना ।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ी घोषणा की है. उन्होंने अगड़ी जातियों के विकास के लिए राज्य में एक आयोग बनाने की घोषणा की है। इस आयोग का अध्यक्ष बीजेपी नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह और उपाध्यक्ष राजीव रंजन बनाये गए हैं. महाचंद्र प्रसाद पूर्व एम एलसी है जबकि राजीव रंजन वर्तमान में जद यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. इस आयोग का कार्यकाल 3 साल होगा. इसके पहले भी बिहार में पहले भी सवर्ण आयोग हुआ करता था. अबकी बार सीएम नीतीश कुमार ने उसका पुर्नगठन किया है. बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी कर दिया है.

इस बार बिहार चुनाव चुनाव में कई मुद्दे होंगे जिनमें जातीय जनगणना भी टॉप पर रहेगा. एनडीए जातीय जनगणना का क्रेडिट लेने में जुटी है. जातीय जनगणना करवाने की घोषणा के बाद सवर्ण समाज में नाराजगी देखने को मिली थी. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नाराज वोटरों को NDA मनाने में जुट गई है. सवर्णों के विकास के लिए आयोग का पुनर्गठन करके अगड़ी जातियों की मनाने की कोशिश हो रही है. गौरतलब है कि इसी साल के अंत तक सूबे में विधानसभा चुनाव होना है.

2011 में बिहार में सवर्ण आयोग का किया गया था गठन

2011 में बिहार में सवर्ण आयोग का गठन किया गया था. 2013 में आयोग ने 11 जिलों के सर्वेक्षण के आधार पर सरकार को एक रिपोर्ट दी थी. गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के फैसले को केंद्र की मोदी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम समय की उपलब्धि मान रही है. जबकि बिहार में सवर्ण जातियों के शैक्षणिक व आर्थिक हालात का जायजा लेने के लिए 2011 में सवर्ण आयोग का गठन किया गया था.

2010 का बिहार विधानसभा चुनाव ही सवर्ण आरक्षण के नाम पर लड़ा गया था. लालू यादव ने सवर्ण आरक्षण का मुद्दा उठाया था तो बदले में नीतीश कुमार ने भी सुर में सुर मिला दिया. नीतीश कुमार दोबारा सत्ता में आए और 2011 में सवर्ण आयोग का गठन किया गया. 27 जनवरी 2011 को कैबिनेट ने सवर्ण आयोग बनाने को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही सवर्ण आयोग बनाने वाला बिहार अकेला राज्य बन गया था. मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से ही लगभग सभी पार्टियां ऊंची जाति के गरीबों की हिमायत करती रही हैं. इलाहाबाद हाइकोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश डीके त्रिवेदी की अध्यक्षता में बिहार सवर्ण आयोग बना. इसके उपाध्यक्ष कृष्णा प्रसाद सिंह बनाये गये थे और सदस्यों में नीतीश कुमार के दोस्त इंजीनियर नरेंद्र प्रसाद सिंह, फरहत अब्बास व संजय मयूख शामिल थे. बाद में भाजपा कोटे संजय मयूख के आयोग से हट जाने के बाद रिपुदमन श्रीवास्तव सदस्य बनाये गये थे. आयोग ने 25 मई 2011 को घोषणा की थी कि अगले छह महीने में वह सरकार को रिपोर्ट सौंप देगी. 2013 में आयोग ने 11 जिलों के सव्रेक्षण के आधार पर सरकार को एक रिपोर्ट दी थी.

सवर्ण आयोग की सिफारिशों पर नीतीश सरकार ने अमल शुरू किया और सालाना डेढ़ लाख रुपये से कम आमदनी वाले सवर्ण जाति के परिवारों के जो बच्चे प्रथम श्रेणी में दसवीं की परीक्षा पास करेंगे, उन्हें दस हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि शुरु की गई. आयोग की अन्य सिफारिशों को लागू करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई, जिसे संबंधित विभागों से विमर्श कर तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी थी. इसके बाद आयोग और उसकी सिफारिशों का क्या हुआ सब भूल गये. हां सवर्ण आरक्षण के नाम पर राजनीति करना कोई नहीं भूला. सवर्ण आरक्षण एक राजनीतिक मुद्दा बन गया.

Jetline

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