न्यूज डेस्क
बिहार में आज नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया, जिसमें 17 मंत्रियों ने शपथ ली, 9 बीजेपी कोटे से और 8 जदयू कोटे से. भारतीय जनता पार्टी के नेता शाहनवाज हुसैन ने सबसे पहले मंत्री पद की शपथ ली. शाहनवाज हुसैन के बाद श्रवण कुमार ने मंत्री पद की शपथ ली. श्रवण कुमार को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है.
बीजेपी नेता शाहनवाज ने उर्दू में मंत्री पद की शपथ ली.
करीब 20 साल के बाद शाहनवाज हुसैन फिर से मंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. गौरतलब है कि नीतीश कुमार और शाहनवाज हुसैन दोनों ही अटल सरकार में मंत्री रह चुके हैं. फिलहाल कुछ सीटें भविष्य में कैबिनेट विस्तार के लिए सुरक्षित रखी गई है. गौरतलब है कि बिहार में मंत्रियों के लिए 36 पद स्वीकृत किए गए हैं और अभी 17 और पहले के मुख्यमंत्री सहित 14 मंत्रियों को मिलाकर 31 मंत्री हो गए हैं.
आज शपथ लेने वाले मंत्रियों के नाम
बीजेपी कोटे के मंत्री
शाहनवाज हुसैन – BJP
प्रमोद कुमार – BJP
सम्राट चौधरी -BJP
नीरज सिंह – BJP
सुभाष सिंह – BJP
नितिन नवीन – BJP
नारायण प्रसाद – BJP
आलोक रंजन झा – BJP
जनक राम – BJP
जेडीयू कोटे के मंत्री
श्रवण कुमार – JDU
मदन सहनी – JDU
संजय झा – JDU
लेसी सिंह – JDU
सुनील कुमार – JDU
जयंत राज – JDU
जमा खान – JDU
सुमित कुमार सिंह – निर्दलीय
मंत्रियों के विभागों का भी बंटवारा हुआ
50-50 के फॉर्मूले पर अटक गया था मामला
बिहार में 50-50 का फसाद कैबिनेट विस्तार में सबसे बड़ी अड़चन थी. जदयू कैबिनेट में 50-50 के फॉर्मूले पर अड़ गई थी. इसके पहले भाजपा ज्यादा सीटों की बदौलत कैबिनेट में मंत्रियों के ज्यादा सीटों की हकदार थी. फिर अरुणाचल कांड हुआ और BJP बैकफुट पर आ गई. अरुणाचल में जदयू के जीते हुए 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए तो बिहार कैबिनेट में जदयू खुद को मिले हर गम का सिला चाहती है.
दर्जन भर मीटिंग हुई थी
दिल्ली से लेकर बिहार तक के BJP नेताओं ने आधा दर्जन से अधिक बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एक अणे मार्ग में मुलाकात की थी, लेकिन JDU के अड़ने के पीछे बड़ी वजह लोजपा भी रही. पार्टी का मानना है कि बिहार चुनाव में JDU की यह हालत लोजपा की वजह से हुई थी. लोजपा, BJP की ही साथी है और ऐसे में BJP को ही इसका भुगतान करना होगा. JDU, लोजपा की वजह से लगभग 35 सीटों पर खुद को हुए नुकसान का दावा करती रही है.
यहां वोट प्रतिशत तो वहां भी सीटों के बंटवारे में भाजपा ने राज्य कैबिनेट में संख्या के आधार पर हिस्सेदारी की चाहत दुबारा JDU के सामने रखी तो नीतीश कुमार की पार्टी ने उसी की चाल चल दी. जदयू ने केन्द्रीय कैबिनेट में संख्या के आधार पर हिस्सेदारी की मांग कर दी. मतलब, हिस्सेदारी में यहां प्रतिशत तो वहां भी. पार्टी के अंदर के सूत्रों के मुताबिक जदयू ने अपने 16 सांसदों के अनुपात से केन्द्र में 3 मंत्रीपद की मांग की है. इसमें से एक कैबिनेट और 2 राज्यमंत्री का पद है. केन्द्रीय मंत्रिमंडल में ऐसी हिस्सेदारी नहीं दी गई तो बिहार में 50:50 का फार्मूला ही रहेगा.
14 मंत्रियों के साथ नीतीश कुमार ने 16 नवंबर ली थी शपथ
नीतीश कुमार (मुख्यमंत्री) के पास गृह, सामान्य प्रशासन, विजिलेंस समेत कई विभाग,
तारकिशोर प्रसाद (डिप्टी सीएम) के पास वित्त, कॉमर्शियल टैक्स, पर्यावरण और वन, आपदा प्रबंधन, शहरी विकास के साथ सूचना प्रौद्योगिकी,
रेणु देवी (डिप्टी सीएम) के पास पंचायती राज, पिछड़ी जाति का उत्थान और ईबीसी कल्याण के साथ उद्योग मंत्रालय,
विजय चौधरी ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, जल संसाधन, सूचना और प्रसारण और संसदीय कार्य विभाग,
बिजेंद्र यादव ऊर्जा के साथ ही निषेध, योजना और खाद्य एवं उपभोक्ता मामले का मंत्रालय,
अशोक चौधरी को भवन निर्माण, सोशल वेलफेयर, साइंस टेक्नोलॉजी के साथ अल्पसंख्यक कल्याण विभाग,
मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्रालय, लेकिन विवाद के बाद तुरंत इस्तीफ़ा देना पड़ा,
शीला कुमार परिवहन मंत्रालय,
संतोष मांझी लघु सिंचाई के साथ अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण विभाग,
मुकेश सहनी पशुपालन और मत्स्य मंत्रालय,
मंगल पांडेय स्वास्थ्य के साथ ही पथ निर्माण और कला एवं संस्कृति मंत्रालय,
अमरेंद्र सिंह को कृषि, कोऑपरेटिव और गन्ना विभाग,
रामप्रीत पासवान को पीएचईडी,
जीवेश कुमार को पर्यटन, श्रम और खनन विभाग, और
रामसूरत को राजस्व और कानून मंत्रालय.
नीतीश मंत्रिमंडल में शपथ लेने वाले मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्रालय मिला था, लेकिन विवाद में नाम आने के बाद उन्हें तुरंत इस्तीफ़ा देना पड़ा था और अशोक चौधरी को शिक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया. इस तरह 13 मंत्री बच्चे थे.
पिछली सरकार में बीजेपी-जदयू में विभागों का बंटवारा
पिछली सरकार में जदयू कोटे से मुख्यमंत्री को मिलाकर 22 विधायक मंत्री थे तो भाजपा में उप मुख्यमंत्री समेत 13 विधायक ही मंत्री बने थे. बिहार सरकार में कुल 44 विभाग हैं, लेकिन मंत्रियों के लिए सिर्फ 36 पद ही स्वीकृत किए गए हैं. वजह कि विधानसभा की कुल सीटों के 15 प्रतिशत ही मंत्री हो सकते हैं. इसलिए जो विभाग बच जाते हैं, वो मुख्यमंत्री के जिम्मे ही होते हैं.