डॉ. निशा सिंह
बिहार में एक बार फिर से राजनीतिक हलचल आज तेज है. नीतीश कुमार का जेडीयू की ओर से बिहार का सीएम बनना लगभग तय है. लेकिन डिप्टी सीएम पद के लिए बीजेपी में मंथन चल रहा है. उप-मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी को पार्टी ने दिल्ली बुलाया गया है. आज पटना में नव निर्वाचित बीजेपी विधायकों की बैठक है. इस बैठक में बीजेपी विधायक दल का नेता चुना जाएगा. इस बैठक में पर्यवेक्षक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद रहेंगे. इसी बैठक में यह भी तय हो जाएगा कि बीजेपी अपने कोटे में से किसे उप मुख्यमंत्री बनाना चाहती है.
बीजेपी के विधायकों की बैठक के कुछ देर बाद 12.30 बजे एनडीए के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक है. इसमें बीजेपी, जेडीयू, वीआईपी और हम के विधायक मौजूद रहेंगे. इस बैठक में एनडीए के सभी 125 विधायकों को बुलाया गया है. एनडीए विधायकों की इस बैठक में औपचारिक रूप से नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुना जाएगा. नीतीश कुमार के लिए इस बार सबकुछ पहले जैसा आसान नहीं होगा. इस बार सियासी समीकरण और हालात दोनों ही अलग हैं, जिसके चलते नीतीश के सामने चुनौतियां भी कई हैं. एक तरफ तो उन्हें मजबूत विपक्ष का सामना करना होगा तो दूसरी तरफ अपने चार सहयोगियों के साथ संतुलन साधकर चलना होगा.
बिहार में सत्ता विरोधी लहर और विपक्ष की कड़ी चुनौती को पार करते हुए एनडीए ने बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल किया है. नीतीश सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, पर इस बार उनके लिए सबकुछ पहले जैसा आसान नहीं होगा. इस बार सियासी समीकरण और हालात दोनों ही अलग हैं, जिसके चलते नीतीश के सामने चुनौतियां भी कई हैं. एक तरफ तो उन्हें मजबूत विपक्ष का सामना करना होगा तो दूसरी तरफ अपने चार सहयोगियों के साथ संतुलन साधकर रखना होगा.
इस बार एनडीए में चार सहयोगी हैं. इस बार बीजेपी के साथ-साथ जीतन राम मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआईपी भी गठबंधन का हिस्सा हैं. ये दोनों पार्टियां न सिर्फ गठबंधन का हिस्सा भर हैं बल्कि सरकार चलाने के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़े के भागीदार भी हैं. एनडीए को ऐसा जनादेश मिला है, जिसमें नीतीश की कुर्सी के चार पाए के चार मालिक हैं. एनडीए में से किसी एक सहयोगी के नाराज होने या फिर इधर-उधर होने का मतलब है सरकार के लिए जरूरी बहुमत के आंकड़ों से दूर हो जाना.
नीतीश कुमार पूरी मजबूती और बिना हस्तक्षेप के काम करने वाले मुख्यमंत्री माने जाते रहे हैं. विरोधी उनके काम करने की शैली को बिना किसी से विचार-विमर्श किए बगैर फैसला लेने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर करते रहे हैं. बिहार में समीकरण ऐसे हैं कि नीतीश के लिए सरकार चलाने और खुलकर निर्णय लेने की आजादी पहले जैसी नहीं होगी. 2015 में आरजेडी की अधिक सीट लेकर सरकार में हिस्सेदार और हस्ताक्षेप बढ़ा तो कुछ ही महीने बाद के कई मसलों पर नीतीश कुमार असहज हो गए थे. ऐसे में देखना है कि इस बार सरकार पर किस तरह से वो नियंत्रण रख पाते हैं और किस तरह फैसले लेते हैं.
एनडीए में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में है और जेडीयू दूसरे नंबर की पार्टी है. ऐसे में नीतीश कैबिनेट में बीजेपी और जेडीयू ही नहीं बल्कि जीतनराम मांझी की HAM और मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी को भी मंत्री पद देने होंगे. नई कैबिनेट में बीजेपी के मंत्री अधिक होंगे तो जेडीयू के पिछली बार से कम होंगे. बिहार में ज्यादा से ज्यादा 36 मंत्री बने सकते हैं. इस तरह से जेडीयू मंत्रिमंडल में अल्पमत में होगी.
पंद्रह साल बाद बिहार की राजनीतिक में नीतीश कुमार को पहली बार मजबूत विपक्ष का सामना करना होगा. 2005 में पहली बार वह पूर्णकालिक सीएम बने थे तब से विपक्ष बिहार में कमजोर स्थिति में रहा है. इस बार विपक्ष में पहली बार उन्हें घेरने के लिए कम से कम 115 विधायक रहेंगे. विपक्ष न सिर्फ संख्या बल बल्कि तेजस्वी यादव इस चुनाव में एक मजबूत नेता के रूप उभरे हैं. ऐसे में विपक्ष नीतीश कुमार को असहज करने की हर कोशिश करेगा. तेजस्वी के साथ ओवैसी की पार्टी के मुद्दों का सामना करना नीतीश के लिए बड़ी चुनौती होगी.
नीतीश कुमार भले ही सत्ता में वापसी कर गए हों, लेकिन चुनाव में जिस तरह से उनके खिलाफ लोगों की नारजगी देखने को मिली है. उससे नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि थी, उसे गहरा धक्का लगा है. चुनाव के दौरान सत्ताविरोधी लहर साफ दिख रही थी और लोग नीतीश कुमार के प्रति अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे. विकास और रोजगार एक बड़ा मुद्दा बिहार चुनाव में रहा है. ऐसे में नीतीश कुमार अब जब सत्ता पर काबिज होने जा रहे हैं, जो उन्हें अपने खोई हुई सुशासन बाबू की छवि को फिर से मजबूत करने की चुनौती है. इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव के बीच में ऐलान कर दिया कि यह आखिर चुनाव है. ऐसे में लोगों की धारणा को बदलना होगा और साथ ही जेडीयू के खिसके जनाधार को पाने की चुनौती भी होगी.