मायावती का फिर से सियासी दांव : आज अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन करेंगी

लखनऊ : विक्रम राव

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मायावती ने फिर से सियासी दांव चला है. दरअसल, यूपी में जातीय समीकरण साधने के लिए बसपा आज से पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करेगी. राम नगरी अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत होने जा रही है. बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को इसकी जिम्मेदारी दी गई है. अयोध्या के बाद प्रदेश के सभी जिलों में इस तरह के सम्मेलन किए जाएंगे.

दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम का समीकरण फिर दिखेगा

ब्राह्मण सम्मेलन का ये कार्यक्रम दोपहर 1 बजे अयोध्या के तारा जी रिजॉर्ट में होगा. इसके बाद शाम को सतीश चंद्र मिश्रा सरयू आरती में भी हिस्सा लेंगे. 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने दलित और ब्राह्मण वोट पर फोकस किया था. मायावती का समीकरण तब फिट भी बैठा था और वो सत्ता में आई थी. इस बार वो दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण समीकरण बनाकर सत्ता में वापसी की तैयारी में है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जातीय सम्मेलनों व रैलियों पर पाबंदी लगा रखी है

बसपा के इस ब्राह्मण सम्मेलन पर विवाद भी खड़ा हो गया है. दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में सियासी पार्टियों के जातीय सम्मेलनों व रैलियों पर पाबंदी लगा रखी है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 जुलाई साल 2013 को मोती लाल यादव द्वारा दाखिल पीआईएल संख्या 5889 पर सुनवाई करते हुए यूपी में सियासी पार्टियों द्वारा जातीय आधार पर सम्मेलन-रैलियां व दूसरे कार्यक्रम आयोजित करने पर पाबंदी लगा दी थी. जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि सियासी पार्टियों के जातीय सम्मेलनों से समाज में आपसी मतभेद बढ़ते हैं और यह निष्पक्ष चुनाव में बाधक बनते हैं.

मायावती का सोशल इंजीनियरिंग

एक समय बसपा से दलित जातियों के साथ ही पटेल, कुर्मी एवं अति पिछड़ी जातियों में पाल, पनेरी, कुशवाहा, तेली, निषाद, मल्लाह, केवट, नोनिया, भुर्जी, बारी, नाई, शाक्य, सैनी चौरसिया, राजभर आदि जातियां जुड़ीं थीं. मुलायम सिंह यादव के साथ बसपा का गठजोड़ टूटने के बाद भी ये जातियां काफी समय तक बसपा से जुड़ी रहीं. इस बीच कांशीराम की मौत के बाद मायावती की सोशल इंजीनियरिंग में ब्राह्मण, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अप्रासांगिक होने लगे थे. मंडल राजनीति के बाद के माहौल में कांग्रेस से ब्राह्मणों का मोहभंग हुआ था और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिससे वे जुड़े थे, वह उत्तर प्रदेश में शक्तिहीन हो गई थी, ऐसे में बसपा ने उन्हें महत्व दिया. फलतः उनका एक बड़ा हिस्सा 2007 के विधानसभा चुनाव में उससे जुड़ गया था. 2014 के चुनाव में ग़ैर-यादव पिछड़ी जातियों का एक हिस्सा भाजपा के मोदी के रूप में ओबीसी कार्ड दिये जाने के कारण भाजपा की ओर आकर्षित है, तो बसपा की ओर दलितों और ब्राह्मणों का एक खास वर्ग और मुसलमान मत आकर्षित हुए हैं. बसपा ने उत्तर प्रदेश में इस बार ब्राह्मण जाति के सर्वाधिक 21 उम्मीदवार उतारे थे.

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