मनमोहन सिंह के संकेत और भारतीय अर्थव्यवस्था

शिवपूजन सिंह :

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, वैसे तो कम ही बोलते हैं, लेकिन जब बोलते हैं, तो फिर कोई उनकी बात को शायद ही नजरअंदाज करता हो. दरअसल, 24 जुलाई 1991 को नरसिंह राव की सरकार के दौरान मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक बजट पेश किया था. उस आर्थिक उदारीकरण के 30 साल पूरा होने पर, उऩ्होंने कहा कि आगे की राह भारत के लिए 1991 से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगी. मनमोहन सिंह की ये बात, एक विपक्ष के तौर पर मोदी सरकार पर हमला था या फिर वाकई, देश के लिए चुनौतीपूर्ण वक्त आने वाला है! हालांकि, मनमोहन जब बजट, अर्थव्यवस्था, रोजगार, विकास और गरीबी पर बोलते हैं, तो लोग उन्हें गंभीरता से सुनते हैं.

2016 में हुए नोटबंदी पर भी मनमोहन ने मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की थी. इसे सरकार का ‘संगठित लूट’ करार दिया था. अपने पेश किए बजट के तीन दशक पूरा होने के बाद, मनमोहन ने एक बार फिर सरकार को चेतवानी दे डाली है कि आने वाले दिन अच्छे नहीं हैं. मनमोहन का दिया ये बयान चिंता पैदा कर सकता है, क्योंकि अभी जो हालात हैं, वो ठीक नहीं हैं. हां, ये सच है कि जो दिख रहा है, इससे तो लगता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है, लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक खोखलापन, बेबसी और अंतहीन दर्द छुपा हुआ है, जो आप और हम खुद से सवाल पूछे तो खुद ब खुद जवाब मिल जाएगा. हम सच से कैसे मुंह मोड़ सकते हैं ? इससे कैसे दरकिनार कर सकते हैं कि कोरना वायरस ने अपने पंजे में जकड़ कर देश-दुनिया को तबाह करके रखा है. रोजी-रोजगार का संकट है, महंगाई चरम पर है, और उद्योग-धंधे का हाल बेहाल है. हालात पहले जैसे बिल्कुल नहीं है, ये हम–आप अच्छी तरह से जानते-समझते हैं.

कोरोना महामारी के बीच, ये सच है कि शेयर बाजार में बहार दिख रही है. सेंसेक्स और निफ्टी नये-नये रिकॉर्ड बना रहा है. 1991 में तीस शेयर का सूंचकांक सेंसेक्स करीब 1300 अंक का था, जो आज 50 हजार पार कर गया है. निवेशकों ने अपने पैसे का अच्छा मुनाफा कमाया, लेकिन हकीकत यही है कि हम शेयर बाजार को ही आर्थिक समृद्धि का पैमाना नहीं मान सकते. इसमे भी फायदा कुछ चंद लोगों को ही हुआ है और हो रहा है.

1991 में भी देश के हालात विकट थे, भारी घाटा और कर्ज के बोझ तले भारत दबा था. रिजर्व बैंक का सोना विदेशों में गिरवी था. अर्थव्यवस्था का हाल तो ये था कि महज तीन हफ्ते का ही विदेशी मुद्रा भंडार भुगतान के लए बचा था. कोई चमत्कार ही अर्थव्यव्सथा को पटरी पर ला सकता था. बैसाखी पर टिके नरसिंह राव सरकार के समय वित्त मंत्री रहे मनमोहन ने अपने पहले बजट में वही चमत्कार किया था. अपने करिश्माई बजट से देश को मुसीबत से निकाला और आर्थिक उदारीकरण के रास्ते देश को एक नई राह दिखाई. बजट में दी गई रियायत ने रोजगार और बाजार के नये रास्ते खोले. सरकारी नौकरी की आश में जिंदगी गुजार रहे युवा को समझ में आया कि निजी क्षेत्र में भी पैसा और तरक्की मिल सकती है. उद्योग धंधे खोलने के लिए तमाम रियायते दी गई, सरकारी नियम-कायदे को आसान बनाया गया और लोन आसानी से मिलने लगे, जिसके चलते कारोबारी मानसिकता पैदा हुई और व्यवसाय को गति मिली. ये जो सिलसिला शुरु हुआ, वो आज तक जारी है. पिछले तीन दशक के दौरान आने वाली सरकारों ने इसका अनुसरण किया है. इसका नतीजा रहा कि आज भारत की अर्थव्यवस्था तीन हजार अरब डॉलर की हो गई है, जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था में से एक है.

मनमोहन के आर्थिक सुधार के मंत्र को तो नहीं भुलाया जा सकता, इतिहास उन्हें याद रखेगा. खैर, संसद में उनका बयान मोदी सरकार पर तोहमत लगाने के लिए बोला गया या फिर एक अर्थशास्त्री के नाते उनकी नसीहत थी, वे खुद ज्यादा बेहतर जानते हैं. वैसे हम और आप पिछले देढ साल से चुनौतियों का ही सामना किया है… और कर रहे हैं. जहां सभी को अपनी जिंदगी की फिक्र है, जो हमारी अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से कहीं ज्यादा गंभीर लगती है.

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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