सोनी किशोर सिंह
राजनीति में शब्दों की मर्यादा पार करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में अपशब्दों और द्विअर्थी शब्दावलियों ने राजनीतिक शुचिता को खण्ड-खण्ड करने में रिकॉर्ड कायम किया है. अभी कुछ दिन पहले ‘हरामखोर’ शब्द को जस्टिफाई करने के लिए नया नाम दिया गया ‘नॉटी’ और अब ‘आइटम’ को जस्टिफाई करने के लिए ‘नाम याद नहीं’ का बहाना. अगर यादाश्त कमजोर है तो बादाम खाइए, न कि अपनी कुंठा का सार्वजनिक प्रदर्शन कीजिए.
एक ओर नवरात्रि में देश शक्ति की उपासना कर रहा है, देवी मां की आराधना कर रहा है और दूसरी ओर कमलनाथ को महिला नेत्री का नाम याद नहीं आने पर ‘आइटम’ कहना पड़ता है. कमलनाथ इस शब्द पर सफाई देते हुए कहते भी हैं कि नाम नहीं याद आने पर आइटम कह दिया तो क्या हो गया? सही भी है आम जीवन में लोग नाम नहीं याद आने पर तरह-तरह का संबोधन जाने-अंजाने करते हैं, जैसे अगर किसी को नाम याद न रहे तो वो सांपनाथ, नागनाथ कह कर काम चला सकता है, लेकिन कमलनाथ ने जो किया, जो कहा और कहते समय उनकी जो भाव-भंगिमा थी, वो शालीनता से मीलों दूर थी और साफ पता चल रहा था कि वो जान-बूझकर आइटम का संबोधन कर रहे थे.
गूगल पर जब आइटम का अर्थ देखेंगे तो वस्तु, माल, चीज लिखा है. तो क्या कमलनाथ के लिए एक स्त्री सिर्फ वस्तु है या चीज है? कमलनाथ पढ़े-लिखे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जाहिर सी बात है कि इतनी जानकारी उन्हें भी होगी और अगर जानते-समझते उन्होंने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया तो यह स्त्रियों के प्रति उनकी सोच है. हालांकि अपने बयान पर उन्होंने खेद प्रकट किया है, लेकिन क्या खेद प्रकट करने से मामला खत्म हो जाता है? उनकी उस सोच का क्या जिसमें महिलाओं के लिए ऐसी प्रतीकात्मक, तुलनात्मक उपमाएं भरी हैं?
सोचिए, जब इतने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सार्वजनिक जीवन में ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं, तो वास्तविक जीवन में इनका व्यवहार कैसा होगा?