नई दिल्ली : डॉ. निशा सिंह
“पंच प्रण” पर आधारित तीन दिवसीय आयोजन “दीपोत्सव- पंच प्रण” के तीसरे दिन “एकता और एकात्मता” विषय पर भारत की संस्कृति और गौरवपूर्ण इतिहास पर विस्तार से चर्चा की गई. इस अवसर पर विचारोत्तेजक व्याख्यान देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारत ने विश्व को जो रास्ता दिखाया, जिसके कारण हम विश्वगुरु कहलाए, जिसके कारण हम महान हुए, वह यह है कि भोग में सम्मान हो सकता है, पूजा नहीं हो सकती. त्याग में और मूल्यों में पूजा होती है और भारत भोगवाद की दुनिया नहीं है. उन्होंने कहा कि अपने मूल्यों के बल पर कल हमें दुनिया का नेतृत्व करना है.
“पंच प्रण” पर आधारित तीन दिवसीय आयोजन “दीपोत्सव- पंच प्रण” के तीसरे और आखिरी दिन यानी 22 अक्टूबर को कार्यक्रम का भव्य समापन श्रीराम कला केंद्र द्वारा ऐतिहासिक रामलीला के मंचन के साथ हुआ. कार्यक्रमका आयोजन हिन्दुस्थान समाचार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा किया गया था. इस सत्र के मुख्य अतिथि इंद्रेश कुमार और विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर थे. इस सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात नृत्यांगना और सांस्कृतिक विदुषी पद्मविभूषण श्रीमती सोनल मानसिंह ने की. इस अवसर पर प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका सुचरिता गुप्ता ने गायन किया और कुंवर जावेद ने कविता पाठ किया. कार्यकर्म के अंत में श्रीराम कला केंद्र की ऐतिहासिक रामलीला का मंचन हुआ.
दूसरों को काफिर कहने वाला धर्म, धर्म नहीं हो सकता -इंद्रेश कुमार
आरएसएस कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारत तीर्थों, त्योहारों और मेलों का देश है, हम अपना धर्म बदल सकते हैं, लेकिन पूर्वज नहीं बदल सकते. उन्होंने कहा कि भले ही हमारा देश बंट गया, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग भी भारतीय हैं, हिन्दुस्तानी हैं, इंडियन हैं, चाहे वे अपने को जिस नाम से पुकारें. उन्होंने यह भी कहा कि दूसरों को काफिर कहने वाला इनसान नहीं हो सकता और वह धर्म, धर्म नहीं हो सकता.
पर्व और त्योहार हमें एक रखने का कार्य करते हैं- सुनील अंबेकर
इस अवसर पर आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने सभी को दीपोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमारे पर्व और त्योहार हमें एक रखने का कार्य करते हैं. उन्होंने कहा कि भारत हजारों वर्षों से जबरदस्ती से एक नहीं रहा है, राजाओं के कारण एक नहीं रहा है, संप्रदाय या धर्म का कोई ऐसा बंधन नहीं रहा है, जिसके कारण आपको ऐसा ही करना पड़े, ऐसा भारत में कभी कुछ नहीं रहा है, लेकिन ऐसा नहीं रहते हुए भी हम एक हैं, सहज रूप से एक हैं और आने वाले समय में भी हम अपनी एकात्मता को मजबूत करना चाहते हैं, तो हम लोगों को उन उपायों की तरफ ही ध्यान देना होगा.”