किसान आंदोलन: सरकार और किसान के बीच सातवें दौर की बैठक 30 दिसंबर को होगी


डॉ निशा सिंह

किसान संगठनों ने कल सुबह 11 बजे सरकार को अगले दौर की बातचीत का प्रस्ताव दिया था. अब सरकार ने किसानों को कल नहीं बल्कि 30 दिसंबर को बातचीत के लिए बुलाया है.
पहले ये बैठक 29 दिसंबर को होने वाली थी लेकिन केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को चिट्ठी लिखकर 30 दिसंबर को बैठक के लिए आने को कहा है। किसानो के साथ होने वाली मीटिंग से पहले आज गृह मंत्री अमित शाह के घर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आगे रणनीति पर चर्चा की। बुधवार को होने वाली सरकार और किसानों के बीच बैठक पर सबकी नजरें हैं। सरकार ने बैठक के लिए अपनी सहमति दे दी है। जिसके लिए केंद्रीय कृषि सचिव ने 40 किसान संगठनों को चिट्ठी लिखकर 30 दिसंबर दोपहर 2 बजे बैठक तय किया है। सरकार की चिट्ठी पर कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा गया है कि तीनो कृषि कानूनों,एमएसपी,पराली की समस्या और विद्युत संशोधन 2020 पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। किसान की नजर से अगर आएंगे तो समाधान निकलेगा और राजनीतिक चश्मे से आएंगे तो उसका समाधान नही हो सकता।

सूत्रों के मुताबिक किसान संगठनों के साथ होने वाली बैठक को लेकर गृह मंत्री के घर मंत्रियों ने चर्चा की ।पीयूष गोयल और नरेंद्र सिंह तोमर के पास किसान आंदोलन से निपटने की जिम्मेदारी है। किसानो के आंदोलन से निपटने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश को जिम्मेदारी दी गयी है।यही मंत्री किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहे हैं।लेकिन सरकार और किसानों के बीच छह दौर की बैठक के बाद भी कोई नतीजा नही निकल पाया है और अब सबकी नजरें 30 दिसंबर को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच होने वाली अहम बैठक पर है।

8 दिसंबर के बाद से केंद्र सरकार किसानों से बार-बार बातचीत की टेबल पर लौटने की अपील कर रही थी, लेकिन आज सरकार को तय करना है कि बातचीत आगे कैसे बढ़े. पहली शर्त ये है कि तीनों कृषि कानून रद्द करने की प्रक्रिया पर सबसे पहले चर्चा हो, MSP की कानूनी गारंटी की प्रक्रिया और प्रावधान पर बात हो, पराली जलाने पर दंड के प्रावधानों को बाहर करने पर चर्चा हो और बिजली कानून में जरूरी बदलाव किए जाएं. किसानों ने इन शर्तों के साथ 29 दिसंबर को बातचीत का प्रस्ताव सरकार को भेजा था साथ में ये चेतावनी भी है कि मांगें नहीं मानी तो आंदोलन खत्म होने की बात भूल ही जाएं.

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