कृषि बिल के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान

न्यूज डेस्क

सरकार द्वारा लाए गए कृषि बिल पर बबाल बढ़ गया है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम उत्तर प्रदेश, बिहार में किसान सड़क पर उरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों के आज के आंदोलन से रेलवे और अन्य परिवहन व्यवस्था पर असर पड़ा है.
राजस्थान के डूंगरपुर में नेशनल हाईवे 8 पर जमकर हंगामा, आगजनी और पथराव की घटना हुई है. यहां हाईवे ब्लॉक करने को लेकर मामला गरमा गया और हालात बेकाबू हो गए. छात्रों ने पुलिस पर पथराव किया, पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. कई किलोमीटर तक हाईवे पर कब्जा करने से जमा लग गया. इस प्रदर्शन में कई पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.

भारतीय किसान यूनियन समेत विभिन्न किसान संगठनों ने आज देशभर में चक्का जाम करने का एलान किया है. इसमें 31 संगठन शामिल हैं. किसान संगठनों को कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी, अकाली दल, आप, टीएमसी समेत कई पार्टियों का सपोर्ट भी मिला है. पंजाब में तीन दिवसीय रेल रोको अभियान की कल से शुरुआत हो गई है. पंजाब के अमृतसर में किसान मजदूर संघर्ष समिति का रेल रोको अभियान जारी है. किसान पूरी रात से रेलवे ट्रैक पर ही डटे है. किसानों का कहना है कि हम 26 सितंबर तक रेल रोको अभियान चलाएंगे, उसके बाद भी अगर सरकार बिल वापस नहीं लेती है तो हम आगे की रणनीति बनाएंगे.
इधर महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि किसानों से एमएसपी छीन ली जाएगी. उन्हें कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए खरबपतियों का गुलाम बनने पर मजबूर किया जाएगा. न दाम मिलेगा, न सम्मान. किसान अपने ही खेत पर मजदूर बन जाएगा. भाजपा का कृषि बिल ईस्ट-इंडिया कम्पनी राज की याद दिलाता है. हम ये अन्याय नहीं होने देंगे.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कृषि बिल के खिलाफ ट्रैक्टर रैली निकाली है. बिहार से भी प्रदर्शन के दौरान तोड़-फोड़ और आगजनी की खबर आ रही है. इस दौरान तेजस्वी ने कहा कि सरकार ने हमारे ‘अन्नदाताओं’ को ‘निधिदाता’ के माध्यम से कठपुतली बना दिया है. कृषि बिल किसान विरोधी है. सरकार ने कहा था कि2022 तक किसानों की आय को दोगुना करेगी, लेकिन ये बिल उन्हें और गरीब बना देगा. कृषि क्षेत्र का कॉर्पोरेटकरण किया गया है.
किसानों की असली चिंता एमएसपी को लेकर है,कृषि मंडियों को लेकर है. उन्हें डर है कि नए बिल के प्रावधानों की वजह से कृषि क्षेत्र पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा. कुछ संगठन और सियासी दल चाहते हैं कि MSP को बिल का हिस्सा बनाया जाए ताकि अनाज की खरीदारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे ना हो. जबकि सरकार साफ-साफ कह चुकी है कि MSP और मंडी व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी.

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