दिल्ली : वरिष्ठ संवाददाता
हथकरघा और हस्तकरघा से जुड़े बुनकरों को कोरोना काल में भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. बनारस से लेकर सूरत तक में काम नहीं मिलने से बुनकरों की आर्थिक हालत अभी ठीक नहीं है. केंद्र सरकार की कई योजनाएं मार्केट को सुधारने में लगे हैं, वहीं कई प्लेटफार्म भी एक्टिव हैं, जहाँ पर बुनकरों को आर्थिक मदद मिल रही है. ऐसा ही एक प्लेटफार्म इन दिनों दिल्ली के लुटियन जोन कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ‘न्यू इंडिया सिल्क फैब प्रदर्शनी’ में देखा जा रहा है. यहाँ पर देश के 20 प्रांतों से आए बुनकरों को बाजार उपलब्ध कराया गया है. यहाँ पर बाजार से किफायती दामों पर सिल्क फैब प्रदर्शनी में कपड़े मिल रहे हैं.
यह प्रदर्शनी 10 अक्टूबर से शुरू हुई है, जो 14 अक्टूबर तक चलेगी. हैंडलूम प्रदर्शनी का शुभारंभ करते हुए भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की पत्नी श्रीमती मृदुला प्रधान ने कहा कि बुनकरों के लिए ये प्लेटफार्म काफी मददगार साबित होगा. बुनकरों के द्वारा बनाये गए हथकरघा और हस्तकरघा से जुड़े कपड़े खरीददारों को कम दाम में मिलेंगे.
दिल्ली प्रांत के संघचालक की धर्मपत्नी एवं भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती रेखा गुप्ता एवं संघ के अखिल भारतीय प्रचारक इतिहास संकलन के प्रमुख बालमुकुंद ने देश के 20 प्रांतों से आए बुनकरों का हौसला बढ़ाया. इन लोगों ने कहा कि बुनकरों को डायरेक्ट बाजार उपलब्ध कराकर उनके परिवारों में कोरोना से उपजी आर्थिक समस्याओं से निजात दिला आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने का एक प्रयास किया है.
हमारा प्रयास देश भर के बुनकरों को नया जीवन देना है : आयोजक
हथकरघा बनारस की प्राचीनतम शिल्पकारी है, यह करीब छह सौ साल पहले पैदा हुए कबीर के पेशे से भी पता चलता था. आपको बता दें कि केंद्र सरकार हथकरघा को प्रोत्साहित करने और बुनकरों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए बनारस के अलावा बरेली, लखनऊ, सूरत, कच्छ, भागलपुर और मैसूर में व्यावसायिक केंद्रों के गठन की बजट में मंजूरी दी है. राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के तहत वर्कशेड के निर्माण के लिए एससी/एसटी/बीपीएल और महिला बुनकरों को 100 प्रतिशत सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है. सिल्क फैब प्रदर्शनी के आयोजक ने बताया कि हमारा प्रयास बुनकरों को नया जीवन देना है, तो उन्हें सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने और बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के अलावा अपना उत्पाद सीधे बाजार में बेचने का अवसर उपलब्ध कराना होगा. ई-कॉमर्स और फ्लिपकार्ट जैसे जुमले सुनने में अच्छे लगते हैं, पर सबसे पहले बुनकरों को लेवल प्लेइंग फील्ड चाहिए. उनकी स्थिति तभी सुधरेगी, जब सरकार तमाम योजनाओं पर अमल करने की प्रतिबद्धता दिखाएगी. प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक तीसरी हथकरघा गणना (2009-10) के अनुसार, देश भर में लगभग 43.31 लाख हथकरघा बुनकर एवं सहायक कामगार हैं. इनमें से 77 प्रतिशत बुनकर एवं सहायक कामगार महिलाएं हैं जो बुनाई एवं संबंधित कार्यों से जुड़ी हुई हैं और अपने-अपने परिवारों के लिए आय अर्जित कर रही हैं.