शराबबंदी के बाद भी बिहार में शराब पीने से मौतें क्यों हो रही है, आंकड़ों से समझें

पटना : उमेश मिश्रा

बिहार में अप्रैल, 2016 से शराबबंदी लागू है, लेकिन राज्य में नकली और जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है. हालांकि राज्य सरकार इन मौतों को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत मानती है और शराब पीने से हुई मौत से लगातार इनकार करती रही है. शनिवार को नालंदा में फिर से 8 लोगों की मौत इसके पीने से हुई है. दरअसल शराब के केसों पर धीमी सुनवाई और ट्रायल के बाद अधिकांश अभियुक्तों के छूट जाने से लोगों में कानून का डर कम है और वो नकली शराब बनाने और बेचने के धंधे में लगे रहते हैं.

बीते शनिवार को नालंदा जिले के सोहसराय थाना क्षेत्र में पिछले 24 घंटे के दौरान 8 लोगों की संदिग्ध स्थिति में मौत हो गई है, जबकि कई अन्य लोगों की निजी अस्पताल में भर्ती कराया है. पिछले साल नवंबर में मुजफ्फरपुर में जहरीली शराब का सेवन करने से 6 लोगों की मौत हो गई थी.

न्यायालयों में सुनवाई की धीमी रफ्तार और सजा की कम दर सबसे बड़ी बाधा

शराबबंदी लागू होने के बाद बीते करीब पौने छह साल में इससे जुड़े करीब 3.5 लाख मामले दर्ज हुए, जिसमें मात्र 1636 केस में ही ट्रायल पूरा हो सका है और 1019 अभियुक्तों को सजा मिली. इन मामलों में 610 यानी 40 फीसदी अभियुक्त छूट जाए. साफ है कि बिहार में इन मामलों की न्यायालय में काफी धीमी सुनवाई और सजा होने की कम संख्या ऐसी घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है.

सबसे अधिक केसों का ट्रायल और सजा दिलाने वाले जिले

बिहार में अररिया, बांका, भागलपुर, पूर्वी चंपारण, किशनगंज, रोहतास, समस्तीपुर, वैशाली और पश्चिम चंपारण जिलों में सबसे अधिक केसों का ट्रायल पूरा हुआ है. पूर्वी चंपारण में सबसे अधिक 128 लोगों को इस मामले में सजा मिली है. इसके साथ ही अररिया में 88, रोहतास में 64, समस्तीपुर में 62, पश्चिम चंपारण में 57 और किशनगंज में 41 अभियुक्तों को सजा मिली है. जबकि, अररिया में सबसे अधिक 192, बांका में 136, वैशाली में 42, शिवहर में 39, सुपौल में 38, पश्चिम चंपारण में 32 और किशनगंज में 28 आरोपियों की रिहाई हुई है.

पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश के बाद मद्य निषेध और बिहार पुलिस ने ट्रायल के शेष मामलों में दोषियों को सजा दिलाने के लिए न्यायालय में पर्याप्त साक्ष्य पेश करने को लेकर तेजी दिखाई है. तेजी से मामले की सुनवाई कराने पर फोकस किया गया है, ताकि अधिक देरी होने पर साक्ष्य नष्ट होने से बचाया जा सके. इतना ही नहीं, रिहा हुए अभियुक्तों को भी सजा दिलाने के लिए उच्च न्यायालय में अपील की व्यवस्था की जा रही है.

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