न्यूज डेस्क
म्यांमार में नवंबर, 2020 में सम्पन्न हुए आम चुनावों को सेना ने फर्जी बताया और इसके बाद सैनिक विद्रोह की आशंकाएं बढ़ गई थी. इस विद्रोह से बचने के लिए सेना ने आंग सान सू ची, राष्ट्रपति विन मिंत और कई अन्य नेताओं को सोमवार तड़के हिरासत में ले लिया गया. इस तख्तापलट के साथ ही सेना ने देश का नियंत्रण एक साल के लिए अपने हाथों में ले लिया है. सेना ने जनरल को कार्यकारी राष्ट्रपति नियुक्त कर दिया है.
सेना का आरोप है कि 8 नवंबर, 2020 को हुए आम चुनाव फर्जी थे. चुनाव में सू ची की एनएलडी पार्टी को संसद में 83 प्रतिशत सीटें मिली थीं, जो सरकार बनाने के लिए पर्याप्त थीं. सेना ने चुनाव को फर्जी बताते हुए देश की सर्वोच्च अदालत में राष्ट्रपति और मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ शिकायत भी की थी, जिसे चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया था. इसके बाद सेना ने हाल ही में कार्रवाई की धमकी दी थी और तबसे ही तख्ता पलट की आशंकाएं बढ़ गई थीं.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने म्यांमार सेना द्वारा किए गए तख्तापलट को लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम पर सीधा हमला बताया है. साथ ही म्यांमार पर नए प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है. उन्होंने म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची समेत देश के शीर्ष नेताओं को हिरासत लेने के कदम की आलोचना की है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने वैश्विक समुदाय का भी आह्वान किया कि वह एक साथ म्यामांर की सेना पर दबाव डाले.
बाइडेन ने कहा है,
“म्यामांर की सेना द्वारा तख्तापलट, आंग सान सू ची तथा अन्य प्राधिकारियों को हिरासत में लिया जाना और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा देश में सत्ता के लोकतंत्रिक हस्तांतरण पर सीधा प्रहार है. लोकतंत्र में सेना को जनता की इच्छा को दरकिनार नहीं करना चाहिए. लगभग एक दशक से म्यांमार के लोग चुनाव कराने, लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को लेकर लगातार काम कर रहे हैं. इस प्रयास का सम्मान किया जाना चाहिए.”
लंबा है म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का इतिहास
म्यांमार में कल सोमवार 1 फरवरी को सेना ने फिर से तख्तापलट कर देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली है. स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची की पार्टी ने कहा है कि सेना ने उन्हें नजरबंद कर लिया गया है. म्यांमार में सैन्य शासन और तख्तापलट का लंबा इतिहास रहा है.
4 जनवरी, 1948: बर्मा के नाम से जाने जाने वाले म्यांमार को ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई.
1962: सैन्य नेता ने विन ने तख्तापलट कर कई साल तक सैन्य शासन (जुंटा) देश पर शासन किया.
1988: म्यांमार में जुंटा के खिलाफ शुरू हुए लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के बीच, स्वतंत्रता के नायक रहे आंग सान की बेटी आंग सान सू ची देश वापस लौटीं. अगस्त में सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें सैंकड़ों लोगों की मौत हुई.
जुलाई 1989: जुंटा के खिलाफ आवाज उठाने वाली सू ची को नजरबंद कर लिया गया.
27 मई, 1990: सू ची द्वारा स्थापित की गई पार्टी ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ को चुनावों में जबदस्त जीत हासिल हुई, लेकिन सेना ने सत्ता सौंपने से मना कर दिया.
अक्टूबर 1991: सू ची को सैन्य शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिये नोबेल शांति पुरस्कार मिला.
7 नवंबर, 2010: 20 साल बाद देश में पहली बार हुए चुनाव में सेना के समर्थन वाली पार्टी को जीत मिली. हालांकि चुनाव में धांधली के आरोप लगाते हुए नतीजों का बहिष्कार किया गया.
13 नवंबर, 2010: दो दशक की लंबी अवधि तक नजरबंद रखने के बाद सेना ने सू ची को हिरासत से रिहा किया गया.
2012: सू ची एक बार फिर उपचुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंची. वह पहली बार किसी सार्वजनिक पद पर काबिज हुईं.
8 नवंबर, 2015: 1990 के बाद पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए म्यांमार के आम चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली. लेकिन सेना ने संविधान के तहत प्रमुख शक्तियां अपने पास रखीं, जिसमें सू ची को राष्ट्रपति पद से दूर रखना शामिल है. राष्ट्रपति के जगह सरकार के नेतृत्व के लिये स्टेट काउंसलर का पद सृजित किया गया और सू ची इस पर काबिज हुईं.
25 अगस्त, 2017: म्यांमार के पश्चिमी रखाइन राज्य में सैन्य चौकियों पर चरमपंथी हमले हुए, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए. सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ भीषण कार्रवाई करते हुए पटलवार किया, तो हजारों लाखों की संख्या में बांग्लादेश भाग गए.
11 दिसंबर, 2019: सू ची ने द हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक मामले में म्यांमार सेना का बचाव करते हुए नरसंहार की बात से इनकार किया.
8 नवंबर, 2020: म्यांमार में हुए आम संसदीय चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को स्पष्ट बहुमत मिला.
29 जनवरी, 2021: चुनाव आयोग ने चुनाव में धांधली के म्यांमार सेना के आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं पाने के बाद सभी आरोप खारिज कर दिए.
1 फरवरी, 2021: म्यांमार की सेना ने अगले एक साल के लिये देश को अपने नियंत्रण में ले लिया. सेना ने कहा कि सरकार चुनाव में धोखाखड़ी के सेना के आरोपों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही है और कोरोना वायरस के चलते नवंबर में चुनाव टालने के सेना के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, इसलिए कार्यवाई की गई है. इधर सू ची की पार्टी ने कहा कि उन्हें नजरबंद कर दिया गया है.