जून से शुरू हो सकती है जनगणना और एनपीआर की प्रक्रिया

दिल्ली : डॉ. निशा सिंह

भारत में इसी साल जून से जनगणना और एनपीआर को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. भारत में हर दस साल में जनगणना होती है. साल 2011 में आख़िरी जनगणना हुई थी और इसी साल में अगली जनगणना होनी है. यह जनगणना न सिर्फ देश की जनसंख्या और दूसरे सामाजिक पहलुओं को सामने लाएगी, बल्कि उन तमाम आंकड़ों को भी समेटगी जो अब तक की जनगणना में कभी शामिल नहीं किए गए हैं. देश में हर दस साल पर जनगणना की परंपरा रही है. अंतिम बार 2011 में जनगणना हुई थी और तब देश की जनसंख्या 1,21,08,54,977 बताई गई थी. भारत में जनगणना 1872 से हो रही है और यह सिलसिला कभी टूटा नहीं है. अब इसे हर दस साल पर फ़रवरी के महीने में पूरा कर लिया जाता है. दूसरा बड़ा बदलाव यह है कि 1872 से लेकर 1931 तक जनगणना में जाति गिनी गई थी, जिसे फिर से करने की आवाज अब फिर से मुखर होने लगी है.

130 साल में पहली बार कोरोना महामारी के कारण जनगणना की प्रक्रिया को रोकना पड़ा था. अब इसे अगले साल फरवरी 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. केंद्र सरकार ने पहले ही नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर को अपडेट करने और जनगणना 2021 की शुरुआत करने को मंज़ूरी दे दी है. कैबिनेट के इस फ़ैसले के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कहा है कि ‘एनपीआर का नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटीज़न (एनआरआईसी) से कोई ताल्लुक़ नहीं है. दोनों के नियम अलग हैं. एनपीआर के डेटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए हो ही नहीं सकता, बल्कि ये जनगणना 2021 से जुड़ा हुआ है.’

दरअसल पहले आशंका जताई जा रही थी कि वैक्सीन की सीमित उपलब्धता और 30 करोड़ प्राथमिकता वाले समूह की बड़ी संख्या के कारण इसमें काफी लंबा समय लग सकता है. लेकिन दो महीने की देरी से शुरू होने के बावजूद जनगणना का पहला चरण और एनपीआर अपडेट करने की प्रक्रिया 31 अक्टूबर तक पूरा करने की कोशिश होगी ताकि एक फरवरी से मूल जनगणना का काम शुरू हो सके.

सरकारी सूत्रों के अनुसार रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया जनगणना और एनपीआर को अपडेट करने की तैयारी पिछले साल ही पूरी कर चुका है. जनगणना के दौरान डाटा जुटाने वाले कर्मियों की ट्रेनिंग भी हो चुकी है. पहली बार डिजिटल होने वाली जनगणना की पूरी तैयारी होने के बावजूद कोरोना के कारण 25 मार्च को लागू लाकडाउन के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था. सामान्य तौर पर जनगणना की प्रक्रिया दो फेज में पूरी की जाती है. एक अप्रैल से 30 सितंबर तक पहले फेज में देश में सभी घरों और उनमें रहने वाले मवेशियों की गणना की जाती है. 2011 में पहली बार इस दौरान आम लोगों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए एनपीआर के डाटा भी पहले फेज में जुटाए गए थे. 2021 में भी एनपीआर के इन डाटा को कई अन्य बिंदुओं पर अपडेट करने की तैयारी थी.

जाति आधारित नहीं होगी जनगणना

सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार जनगणना में जातियों को शामिल नहीं करेगी. 2011 की जनगणना में भी इसका प्रावधान नहीं था, लेकिन राजनीतिक विरोध के बीच तत्कालीन यूपीए सरकार को इसके लिए सहमत होना पड़ा था, लेकिन बाद में जनगणना होने के बाद भी उन आंकड़ों को जारी नहीं किया गया. सरकार का तर्क था कि इसमें लाखों गड़बड़ियों की शिकायतें मिलीं जिस कारण इस डेटा को पब्लिक नहीं किया गया. रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 46 लाख से अधिक जातियां और उपजातियां पाई गई थीं. हालांकि बाद में इसे लेकर राजनीति विवाद भी हुए. वर्तमान में नितीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने के बात उठाकर मोदी सरकार पर दबाब बढ़ा दिया है. बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चले रहे नीतीश कुमार के पहले लालू यादव भी जातिगत जनगणना करने की आवाज उठा चुके हैं.

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