नई दिल्ली : डॉ. निशा सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और ‘माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल’ के संस्थापक-संयोजक ‘पद्मश्री’ विजयदत्त श्रीधर के जीवन और कार्यों पर आधारित पुस्तक “विजयदत्त श्रीधरः एक शिनाख्त” का लोकार्पण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सभागार ‘समवेत’ में किया गया. पुस्तक का लोकार्पण राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. गिरीश्वर मिश्र ने किया. इस अवसर पर डॉ. विजयदत्त श्रीधर, पुस्तक के संपादक डॉ. कृपाशंकर चौबे, आईजीएनसीए के कलानिधि विभाग के अध्यक्ष व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक डॉ. रमेश चंद्र गौर भी उपस्थित थे.
इस अवसर पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने विजयदत्त श्रीधर के अवदानों की मुक्तकंठ से सराहना की. उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के दुनिया पर होने वालों प्रभावों की हर तरफ चर्चा हो रही है. सामान्य शब्दों में ये कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें इनपुट पर ही आउटपुट आधारित होगा. ऑस्ट्रिया में एक अध्ययन हो रहा है कि भारतीय वेदों में, शास्त्रों में, मीमांसा में जो लॉजिक विकसित हुआ है, क्या उसे मैथेमेटिकल फॉर्म दिया जा सकता है, जिससे ये चीजें कंट्रोल हो सकें. ये हमारे जो ज्ञान के धरोहर हैं, जो मूल्य हैं, जो इन शास्त्रों में, माधवराव सप्रे संग्रहालय जैसे संस्थानों में संग्रहित हैं, निश्चित रूप से उस दौर में (एआई के प्रभुत्व के दौर में) समाज पूरी तरह से यंत्रीकृत न हो जाए, इसका उपाय सुझाएंगे, समाज को दिशा देने का काम करेंगे. हरिवंश ने कहा कि विजयदत्त श्रीधर ने सप्रे संग्रहालय की स्थापना करने का जो कार्य किया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा.
विजयदत्त श्रीधर ने ‘माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान’ के नामकरण के औचित्य के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि माधवराव सप्रे का अवदान भारतीय साहित्य और पत्रकारिता में अनुपम है. उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी, सेठ गोविंददास और द्वारिका प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकारों और पत्रकारों को गढ़ा, इसलिए उनके नाम पर इस संग्रहालय का नामकरण किया गया. उन्होंने कहा कि माधवराव सप्रे हिन्दी नवजागरण के जनक हैं. हिन्दी की पहली कहानी ‘एक टोकरी मिट्टी’ उन्होंने ही लिखी थी. विजयदत्त श्रीधर ने यह भी कहा, “इस संग्रहालय की स्थापना में एक हजार से अधिक परिवारों का योगदान है, जिन्होंने अपनी अमूल्य थाती इस संग्रहालय पर भरोसा जताते हुए सौंप दी. मैं तो निमित्त मात्र हूं.”
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामबहादुर राय ने कहा कि उत्तर भारत में सप्रे संग्रहालय जैसे संस्थान की कल्पना करना भी मुश्किल है. उन्होंने कहा कि कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा स्थापित ‘भारतीय विद्या भवन’ को छोड़कर भारत में ऐसा कोई संस्थान नहीं है, जिसकी तुलना सप्रे संग्रहालय से की जा सके. कार्यक्रम में पुस्तक के संपादक डॉ. कृपाशंकर चौबे ने पुस्तक के बारे में बताया. इस पुस्तक में विजयदत्त श्रीधर के अवदान, व्यक्तित्व पर वरिष्ठ लेखकों, पत्रकारों के लेख शामिल हैं. साथ ही, विजयदत्त श्रीधर के महत्त्वपूर्ण लेखों के साथ कुछ प्रसिद्ध शख्सियतों के पत्रों को भी शामिल किया गया है.