डॉ. निशा सिंह
बीजेपी शासित राज्यों में मुख्यमंत्रियों का चेहरा एक-एक कर बदलता जा रहा है. इस पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. क्या बीजेपी आंतरिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है ? क्या पार्टी के अंदर कुछ खास लोगों का प्रभुत्व हो गया है, जो किसी को कभी भी हटा सकती है ? इस संदर्भ में बता दें कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा का जाना पहले से तय था, क्योंकि वह 78 वर्ष के हो चुके थे और फिर परिवार के लोगों का सरकार में दखल बढ़ता जा रहा था. कर्नाटक में पार्टी को वैसे भी पीढ़ी परिवर्तन करना था. गुजरात की बात करें तो विजय रूपाणी जब मुख्यमंत्री बने थे, तभी से तय था कि वह फौरी व्यवस्था के तहत सीएम बने हैं.
विजय रुपाणी को गुजरात का सीएम क्यों बनाया गया और क्यों हटाया गया ?
विजय रुपाणी के गुजरात के सीएम पद पर चुनाव के दो कारण थे. एक, उनका निरापद होना और दूसरा, कोई बड़ा जातीय आधार न होना, यानी उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से जाति समूहों की प्रतिस्पर्धा होने का कोई खतरा नहीं था, लेकिन अब पार्टी को लगने लगा कि 2022 के विधानसभा चुनाव का बोझ रूपाणी के कंधे नहीं उठा पाएंगे, इसलिए पटेल समुदाय को भी आश्वस्त कर दिया कि आप हमारे साथ हैं तो हम भी आपको भूले नहीं हैं, लेकिन इस बदलाव के दो और बड़े कारण दिखाई देते हैं- पहला कारण है, राज्यों में भविष्य का नेतृत्व तैयार करने की प्रक्रिया. जो पद पर बने हैं, वे बने रहेंगे, यह जरूरी नहीं है, लेकिन हटा ही दिए जाएंगे, यह भी नहीं कह सकते. यानी संसदीय जनतंत्र में कुछ भी संभव है, यह संदेश देना है.
मोदी और अमित शाह के बनाए 19 में से 6 मुख्यमंत्रियों को हटाया जा चुका है
अपने शासन काल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने 13 राज्यों में 19 मुख्यमंत्री बनाए हैं, जिसमें अनेक कारणों से 6 मुख्यमंत्रियों को हटाया भी गया है. मोदी और शाह की जोड़ी ने योगी आदित्यनाथ, बिप्लब देब, मनोहर लाल खट्टर, रघुबर दास, लक्ष्मीकांत पारसेकर, प्रमोद सावंत, बीरेन सिंह, पेमा खांडू, आनंदी बेन पटेल, विजय रूपाणी, भूपेंद्र पटेल, बासवराज बोम्मई, हिमंता बिस्व सरमा, सर्वानंद सोनोवाल, देवेंद्र फड़नवीस, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, पुष्कर सिंह धामी, जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया. इनमें से तीन राज्यों गुजरात, गोवा और उत्तराखंड से 6 मुख्यमंत्रियों को हटाया गया है.
बीजेपी ने पार्टी हित में मुख्यमंत्री के चेहरे बदले
जहां सर्वानंद सोनोवाल को विचारधारा के प्रति ज्यादा प्रतिबद्ध और पूवरेत्तर में पार्टी के विस्तार में भूमिका निभाने वाले हिमंता बिस्व सरमा के लिए जगह खाली करना पड़ी. वहीं फड़नवीस, उद्धव ठाकरे के धोखे का शिकार हुए और रघुबर दास अपने अहंकार और र्दुव्यवहार के कारण हटे. इन बदलावों से एक बात साफ है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व राज्यों में नेतृत्व की लगातार समीक्षा कर रहा है. बीजेपी में जहां भी शीर्ष नेतृत्व को लगा कि फैसला गलत हो गया, वहां बदलाव में कोई संकोच नहीं किया गया. भाजपा में जो भी बदलाव हो रहे हैं, उनका आधार एक ही है कि वह पार्टी के हित में है या नहीं?
भाजपा में हर तीन साल में राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष बदल जाते हैं. इससे सामान्य कार्यकर्ता के मन में यह भरोसा है कि वह संगठन और सरकार के शिखर तक पहुंच सकता है और इसी भरोसे को और मजबूत करने के लिए पार्टी जब-तब फैसले लेती है कि किसे पद पर बने रहना है और किसे हटना है. पार्टी के अंदर लोकतंत्र को मजबूती देना इन परिवर्तनों का आधार है.