सोहन सिंह
बिहार में राष्ट्रीय पार्टी का प्रभाव कम हुआ है. बिहार चुनाव में क्षेत्रीय दलों की पीठ पर राष्ट्रीय पार्टियां हैं, ऐसी कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं जो अपने बूते प्रदेश में सरकार बना सके. नतीजा गठबंधन का फार्मूला चल रहा है.
बिहार विधानसभा चुनाव में 1995 में सात राष्ट्रीय दलों को 70 फीसदी वोट मिला था, 2000 चुनाव में 39.99 फीसदी, 2005 में 23.57 फीसदी, दुबारा 2005 के चुनाव में 23 फीसदी, 2010 में 32.29 फीसदी और 2015 में 35 फीसदी वोट मिला. इससे पता चलता है बिहार में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टी जदयू और राजद के बैसाखी पर हैं. यानि नरेंद्र मोदी का लहर बिहार में नितीश और लालू प्रसाद के आगे अभी भी फीका है.
वर्तमान में चुनाव आयोग की लिस्ट में भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, बसपा, सीपीआई व सीपीएम को राष्ट्रीय दल की मान्यता है. इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में भी ये पार्टियां चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन स्थिति यह है कि इनमें से एक भी दल अब इस स्थिति में नहीं है कि अपने बूते सभी सीटों पर चुनाव लड़ सके, जीत सके और सरकार बना सकें. राष्ट्रीय दलों में से कांग्रेस समेत पांच दल राजद के साथ गठबंधन में हैं तो भाजपा ने जदयू से गठबंधन बना रखा है.
गठबंधन की राजनीति के इस दौर में दोनों गठबंधनों के नारे क्षेत्रीय हैं और क्षेत्रीय दलों के शासन के तौर तरीकों तक ही केंद्रित हैं. एनडीए 15 साल बनाम महागठबंधन 15 साल के सवाल पर एक बार फिर राजद के लालू-राबड़ी के जंगल राज को निशाने पर केंद्रित किया है तो महागठबंधन के प्रमुख घटक राजद के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सुशासन का फर्जी दावा है.
इस चुनाव में राजद के लिए बड़ी परेशानी यह है कि वह अपने सुपर स्टार चेहरे लालू प्रसाद के बगैर इस बार मैदान में है. तेजस्वी चुनाव में गठबंधन का चेहरा हैं, हालांकि इस पर भी किचकिच है. घटक दलों के नेता मानते हैं कि तेजस्वी राजद का मुख्यमंत्री चेहरा हो सकते हैं, महागठबंधन का नहीं.
जीतनराम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने महागठबंधन छोड़ते वक्त यही कहा कि उन्हें महागठबंधन के चेहरे के रूप में तेजस्वी कतई मंजूर नहीं हैं. कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल भी कह चुके हैं कि तेजस्वी नौजवान हैं और कम अनुभवी लोग आसानी से गुमराह हो जाते हैं.
लोकसभा चुनाव में भाजपा बेहतर लेकिन विधानसभा 2015 में 53 में सिमटी
2015 का बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए भी अकेले चुनाव लड़ने का प्रयोग था, जिसमें वे फेल हो गयी. तब भाजपा से गठजोड़ तोड़ कर जदयू राजद-कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ी. नीतीश और लालू ने बिहार में भाजपा को उनकी औकात बता दिया. नीतश और लालू ने मिलकर सरकार भी बना ली, मगर नितीश ने बीच में लालू को गच्चा दिया और फिर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लिया. साल भर पहले लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली भाजपा 53 सीटों पर सिमट गई, लेकिन उसे सबसे अधिक 24.42% वोट मिले. हालांकि लड़ी गई 157 सीटों पर भाजपा के वोट 37.48% ही थे, जबकि राजद, जदयू और कांग्रेस के क्रमश: 44.35, 40.65 और 39.49% थे. यही वजह थी कि भाजपा ज्यादा वोट पाकर भी सीटें नहीं बटोर पाई.