बिहार : इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलजों में लड़कियों के लिए 33 फीसदी सीट आरक्षण को मंजूरी मिली

डॉ. निशा सिंह

बिहार के मुख्यमंत्री सीएम नीतीश कुमार ने आज बड़ा निर्णय लिया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में लड़कियों के लिए आरक्षित सीटें होगी. कुल 33 फीसदी लड़कियों के नामांकन के लिए सीटें आरक्षित होंगी. सरकार का लक्ष्य लड़कियों का सामान्य साक्षरता दर बढ़ाने के साथ ही टैक्निकल तौर पर भी शिक्षित करना है. आपको बता दें कि फिलहाल सूबे के ग्रामीण इलाकों में महिला साक्षरता दर 58.7 फीसदी, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 75.9 फीसदी है. ग्रामीण इलाकों में पुरुष साक्षरता दर 78.6 फीसदी और शहरी इलाके में 89.3 फीसदी पर है, जो कि महिलाओं की तुलना में ज्यादा है. बिहार में कुल ग्रामीण साक्षरता दर 69.5 फीसदी है जबकि शहरी साक्षरता 83.1 फीसदी है. बिहार में वर्ष 2001 में 60.32 प्रतिशत पुरुष और 33.57 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर थे.

सरकार ने महिलाओं की शिक्षा और नौकरियों के लिए कई प्रावधान किए हैं

पिछले फरवरी महीने में बिहार का आम बजट आज पेश किया गया था, जिसमें महिलाओं के लिए खास घोषणाएं की गईं थी. सरकार ने उच्च शिक्षा के लिए इंटरमीडिएट (12वीं) पास अविवाहित लड़कियों को 25 हजार रुपये और स्नातक पास लड़कियों को 50 हजार रुपये देने का निर्णय किया था. महिलाओं को नौकरियों में 50% तक आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था. बिहार में 2006 से ही पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं.

आपको बता दें कि नीतीश कुमार की सरकार महिलाओं को नौकरियों में 35 फीसद आरक्षण पहले से दे रही है, इसके बावजूद नौकरियों में महिलाओं की संख्‍या कम है. महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए विशेष योजना लाई गयी, उन्‍हें अधिकतम पांच लाख रुपये का अनुदान भी दिया जा रहा है. इसके अतिरिक्‍त पांच लाख रुपये तक की राशि एक फीसद के मामूली ब्याज पर देने के लिए उद्योग विभाग में दो सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. पांच साल पहले बिहार में सरकारी नौकरियों में महिलाओं के 35 प्रतिशत आरक्षण का नीतीश कुमार ने महत्वपूर्ण लिया था. इस फैसले के बाद राज्य की सभी सरकारी सेवाओं और पदों पर सीधी नियुक्ति में आरक्षित और गैर-आरक्षित कोटे में महिलाओं को 35% आरक्षण का लाभ मिल रहा है.

बिहार मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना 2020

बिहार में 2007 में मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना शुरू किया गया था, जिसका परिणाम बेहतर आया. चूंकि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा की दर संतोषजनक नहीं थी, इसलिए सीएम की राय थी कि मुफ्त साइकिल के प्रोत्साहन से लड़कियों और उनके माता-पिता दोनों को प्रोत्साहन मिला. राज्य सरकार ने यह घोषणा की है कि न केवल स्कूलों में बालिका उम्मीदवारों का प्रतिशत बढ़ गया है, बल्कि छात्राओं के स्कूल ड्रॉपआउट की कुल संख्या भी कम हो गई है. अब तक, सरकार ने योजना के कार्यान्वयन पर 174.36 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

दरअसल, बिहार में बड़ी संख्या में लड़कियां आठवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. लड़कियों को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बिहार सरकार ने साल 2007 में मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना के तहत सरकारी स्कूलों में पढ़ रहीं, आठवीं पास करके नवीं क्लास में पहुंचने वाली सभी लड़कियों को साइकिल देने का ऐलान किया था. इसके लिए 2,500 रुपए लड़कियों को दिए जाते थे. पहले ये राशि स्कूलों में कैंप लगाकर दी जाती थी, लेकिन बाद में लड़कियों के बैंक अकाउंट खुलवाकर दी जाने लगी. साल 2018-19 में इसे बढ़ा कर 3,000 रुपए कर दिया गया. 2015 तक इस योजना की लाभार्थी लड़कियों की संख्या बढ़कर 8.15 लाख हो गई. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2018-19 में 456,278 लड़कियों को साइकिल बांटी गई.

पिछले साल दिसम्बर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि इस योजना की वजह से बिहार में 10वीं कक्षा की परीक्षा देने वाली लड़कियों की संख्या 2005 में 1.8 लाख थी, जो 2019 में बढ़ कर 8.22 लाख हो गयी. पढ़ने के बाद ये लड़कियां बेहतर नौकरियाँ ढूँढती है, साथ ही साइकिल की वजह से लड़कियों में आत्मविश्वास की भी बढ़ोत्तरी होती है. सरकार ने इस योजना की सफलता का दावा करते हुए कहा कि महिला सशक्तिकरण, सामाजिक परिवर्तन और जनसंख्या नियंत्रण में ये योजना सहायक है.

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