लोजपा के पांच सांसद जेडीयू में शामिल होंगे, पशुपति पारस आज करेंगे धमाका

पटना : मुन्ना शर्मा

बिहार की राजनीति में बड़ा नाटकीय मोड़ आ गया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस पासवान लोजपा संसदीय दल के नेता बने हैं. पार्टी के बागी सांसदों ने बैठक कर ये फैसला किया. यानी चिराग को छोड़कर लोक जनशक्ति पार्टी के छह में से बाकी सभी पांच सांसदों ने बगावत कर दी है. बता दें चिराग पासवान से नाराज इन सांसदों ने लोकसभा स्‍पीकर ओम बिरला को चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में उन्‍होंने अपने गुट को अलग मान्‍यता देने की मांग की है. इन सांसदों ने चिराग के चाचा पशुपति पारस को ही अपना नेता बनाया है. बताया जा रहा है कि अलग गुट बनाकर ये सांसद जदयू के पाले में जा सकते हैं. बगावत करने वाले सांसदों में चिराग के चाचा पशपति पारस पासवान के अलावा चचेरे भाई प्रिंस राज, चंदन सिंह, महबूब अली केशर और वीणा देवी शामिल हैं. पशुपति कुमार पारस आज दिल्ली में दोपहर में प्रेस कांफ्रेंस करके लोजपा के टूटने कि औपचारिक घोषणा करेंगे.

सूत्रों के मुताबिक एलजेपी के सांसद और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस की जेडीयू सांसद ललन सिंह से मुलाकात हुई है. उसके बाद जो खबरे आ रही है उसके मुताबिक एलजेपी को बड़ा झटका लग सकता है और चिराज पासवान को छोड़कर इनके पार्टी के बाकी पांच सांसद जेडीयू का दामन थाम सकते है जिसमें पशुपति पारस, चंदन सिंह, प्रिंस पासवान, वीणा सिंह और महबूब अली कैसर शामिल है. आपको बता दें कि लोजपा में बगावत की ये पटकथा पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ही लिखी जानी थी. पशुपति पारस पासवान की अगुवाई में बगावत की खबर बाहर भी आ गई थी. एलजेपी के इकलौते विधायक राज कुमार सिंह पहले ही हो चुके हैं जेडीयू में शामिल हो चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 17, जेडीयू को 16 और एलजेपी को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वहीं लालू यादव की आरजेडी का खाता भी नहीं खुला और 1 सीट अन्य को मिली.

स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोजपा अब डूब रही है

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला लेने के समय से ही सीएम नीतीश कुमार और जदयू के लोग चिराग से नाराज चल रहे थे. चुनावी नतीजों के बाद जद यू को साफ दिखा कि चिराग की पार्टी की वजह से उन्‍हें कई जगहों पर नुकसान का सामना करना पड़ा. उधर, विधानसभा चुनाव में लोजपा को सिर्फ एक सीट मिली. इतने खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के अंदर चिराग पासवान के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी. अब उस नाराजगी को मूर्त रूप मिल रहा है. बिहार के राजनीतिक गलियारों में इसे चिराग के चाचा पशुपति पारस की राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा से भी जोड़कर देखा जा रहा है. कुछ लोग केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्‍तार को लेकर भी अटकलें लगा रहे हैं. बहरहाल, आज दिल्ली में खुद पशुपति पारस पासवान मीडिया से रूबरू होकर इसे साफ करने वाले हैं.

जानिए लोजपा का सियासी सफर को

लोक जनशक्ति पार्टी यानी लोजपा के गठन के बाद से अबतक की उसकी सबसे बड़ी हार 2020 के विधानसभा चुनाव में हुई है. लोजपा के 135 उम्मीदवार मैदान में थे और उसने सिर्फ एक पर ही जीत हासिल की है. अगर लोजपा के इतिहास के आंकड़ों पर गौर करें तो यह चुनाव लोजपा के लिए सबसे बुरा साबित हुआ है या यूं कहें कि ऐसी करारी हार लोजपा को कभी नहीं मिली थी. गठन के बाद से सबसे अधिक 29 सीटें लोजपा को साल 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में प्राप्त हुई थीं. 2000 में लोजपा की स्थापना पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने की थी. साल 2005 का बिहार चुनाव पार्टी के लिए पहला था. फरवरी 2005 में हुए चुनाव में लोजपा का स्पष्ट रूप से किसी दल के साथ गठबंधन नहीं था, पर कांग्रेस के साथ कुछ सीटों पर उसकी आपसी तालमेल थी. तब उसके 178 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. इसके बाद साल 2005 अक्टूबर-नवंबर में हुए चुनाव में लोजपा का सीपीआई के साथ गठबंधन था. लोजपा के 203 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें दस ने जीत दर्ज की थी. इसी तरह साल 2010 के चुनाव में राजद के साथ गठबंधन हुआ और लोजपा के 75 उम्मीदवार मैदान में उतरे. तब उसे दस सीटों पर जीती मिली थी. वर्ष 2015 में एनडीए के तहत 42 सीटों पर लोजपा मैदान में उतरी, जिनमें दो पर विजय प्राप्त की. यहां यह देखने वाली बात होगी कि यह पहली बार है जब चिराग पासवान ने पिता रामविलास पासवान की अनुपस्थिति में चुनाव लड़ा है. इससे पहले चुनाव की कमान हमेशा रामविलास पासवान के हाथ में ही होती थी.

Bihar: 2014 में चली थी मोदी लहर

2014 के लोकसभा चुनाव में यहां मोदी लगह देखी गई थी. 40 सीटों में 22 सीटें अकेले बीजेपी को मिली थी. वहीं, 6 सीटें सहयोगी दल राम विलास पासवान के एलजेपी को मिली थी. एक और सहयोगी दल आरएलएसपी ने यहां से 3 सीटें जीती थीं. यानी एनडीए को कुल 31 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं जेडीयू को 2, कांग्रेस को 2, लालू यादव के आरजेडी को 4 और एनसीपी को 1 सीट मिली थी.

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