डॉ. निशा सिंह
बिहार विधानसभा का भवन ने अपना 100 साल पूरा कर लिया. आज ही के दिन 7 फरवरी, 1921 को इस भवन में कार्यवाही शुरू की गई थी. रोमन डिजाइन की खूबियों को समेटे इस भवन ने कई सरकारें, कई मुख्यमंत्री, कई विधानसभा अध्यक्ष देखे हैं. आज हम इतिहास के इन्हीं पन्नों में से इस भवन के गौरवशाली यादों को जानेंगे.
बिहार राज्य बनने का इतिहास
ब्रिटिश शासन में बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. पर बिहार के लोग अपनी विशिष्ट पहचान को लेकर बंगाल से अलग होने की मांग लगातार करते रहे. 12 दिसम्बर, 1911 के दिन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 के आधार पर बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से अलग राज्य बनाने की घोषणा कर दी
और 22 मार्च, 1912 को बंगाल से अलग होकर बिहार एवं उड़ीसा राज्य अस्तित्व में आया. बिहार का मुख्यालय पटना बना और सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली राज्य के पहले उप-राज्यपाल बने.
बिहार राज्य में 43 सदस्यीय विधान परिषद का गठन किया गया, जिसमें 24 सदस्य निर्वाचित एवं 19 सदस्य उप-राज्यपाल द्वारा मनोनीत थे. इसी परिषद की संख्या परिवर्तनों से गुजरते हुए 243 सदस्यों के साथ आज बिहार विधानसभा के रूप में है. इस विधायी परिषद की पहली बैठक 20 जनवरी, 1913 को बांकीपुर स्थित पटना कॉलेज के सभागार में हुई थी.
भारत सरकार के अधिनियम 1919 द्वारा प्रांतों में द्वितंत्रीय शासन व्यवस्था की शुरुआत की गई, जिसमें प्रशासनिक विषयों को दो श्रेणियों आरक्षित एवं हस्तांतरित में बांटा गया. बिहार और उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए उप-राज्यजपाल की नियुक्ति की गई. लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा को इस प्रांत का पहला गवर्नर नियुक्त किया गया. बिहार और उड़ीसा प्रांतीय परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 103 कर दी गयी, 76 निर्वाचित एवं 27 मनोनीत. इस विधायी परिषद के लिए 1920 में भवन का निर्माण आरंभ हुआ और यही परिषद भवन आज बिहार विधानसभा का मुख्य भवन है. यहां पहली बैठक 7 फरवरी, 1921 को सर वाल्टर मोड की अध्यक्षता में हुई थी, जिसे बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया था.
1937 में पहला चुनाव हुआ
भारत में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलनों के दबाव में ब्रिटिश संसद द्वारा ‘भारत सरकार अधिनियम, 1935’ पारित किया गया. इस अधिनियम द्वारा बिहार और उड़ीसा अलग-अलग स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए. प्रांतीय स्वायत्तता
के महत्वपूर्ण प्रावधान के रूप में कई प्रांतों में द्विसदनीय विधायिका बनी. बिहार में निम्न सदन के रूप में विधानसभा एवं उच्च सदन के रूप में विधान परिषद का गठन हुआ. द्विसदनीय व्यवस्था में बिहार विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 152 कर दी गई, और जनवरी 1937 में बिहार विधानसभा के गठन के लिए पला चुनाव हुआ. 20 जुलाई, 1937 को डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार बनी. 25 जुलाई, 1937 को रामदयालु सिंह बिहार विधानसभा के पहले अध्यक्ष निर्वाचित हुए.
आजादी के बाद विधानसभा सदस्यों की संख्या 330 थी
1950 में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तो 330 सदस्यों का प्रावधान किया गया. इसी के अनुरूप 1952 एवं 1957 में पहला एवं दूसरा आम चुनाव हुआ. 1952 के चुनाव में बिहार विधानसभा के लिए 330 सदस्य निर्वाचित हुए, जबकि एक सदस्य का मनोनयन हुआ. 1956 में राज्य पुर्नगठन आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर बिहार की सीमा में फिर से बदलाव हुआ और विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटकर 318 हो गयी और 1 मनोनीत सदस्य भी बच्चे रहे. 1962, 67, 69 के मध्यावधि चुनावों एवं 1972 के चुनाव में सदस्यों की संख्या 319 ही रही. 1977 में जनसंख्या के अनुपात में बिहार में विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या में छह की बढ़ोतरी होकर 324 निर्वाचित और एक मनोनीत अर्थात कुल सदस्य 325 ही गए. साल 2000 में भारतीय संसद से पुनर्गठन विधेयक पारित होने के बाद झारखंड बिहार से अलग होकर नया राज्य बना, जिसमें बिहार के 324 निर्वाचित सदस्यों में से 81 सदस्य और एक मनोनीत सदस्य झारखंड विधानसभा के सदस्य हो गए. इस तरह बिहार विधानसभा में अब कुल 243 सदस्य हैं.
बिहार विधान सभा के अब तक के अध्यक्ष
1. रामदयालु सिंह 23 जुलाई 1937
2. बिंधेश्वरी प्रसाद वर्मा 25 अप्रैल 1946
3. डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु 15 मार्च 1962
4. धनिकलाल मंडल 16 मार्च 1967
5. रामनारायण मंडल 11 मार्च 1969
6. हरिनाथ मिश्र 21 मार्च 1972
7. त्रिपुरारी प्रसाद सिंह 28 जून 1977
8. राधा नंदन झा 24 जून 1980
9. शिवचन्द्र झा 4 अप्रैल 1985
10. मो. हिदायतुल्लाह खां 27 मार्च 1989
11. गुलाम सरवर 20 मार्च 1990
12. देव नारायण मंडल 12 अप्रैल 1995
13. सदानंद सिंह 9 मार्च 2000
14. उदय नारायण चौधरी 31 नवम्बर 2005
15. विजय कुमार चौधरी 2 दिसम्बर 2015
16. विजय कुमार सिन्हा 25 नवम्बर 2020
बिहार में अब तक 8 बार राष्ट्रपति शासन लगा
बिहार में अबतक कुल आठ बार राष्ट्रपति शासन लगा है, जिसमें कुल 1001 दिन केन्द्र का शासन रहा है. भोला पासवान शास्त्री बिहार के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिनके शासन काल में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा. पहली बार उनके सीएम रहते 29 जून 1968 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और यह 244 दिन रहा. दूसरी बार 4 जुलाई 1969 (227 दिन) और तीसरी बार 9 जनवरी 1972 में 70 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 30 अप्रैल 1977 को जगन्नाथ मिश्र के सीएम काल में (54 दिन), 17 फरवरी 1980 को रामसुंदर दास के मुख्यमंत्री रहते (112 दिन), छठी बार 28 मार्च 1995 को लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री रहते 7 दिन के लिए, 12 फरवरी 1999 को राबड़ी देवी के रहते 25 दिन के लिए और 7 मार्च 2005 को 262 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। जबकि सूबे में 1969 में मध्यावधि चुनाव हुआ था।
1. 29 जून, 1968 को भोला पासवान शास्त्री के समय में 244 दिन.
2. 4 जुलाई, 1969 को भोला पासवान शास्त्री के समय में 227 दिन.
3. 9 जनवरी, 1972 को भोला पासवान शास्त्री के समय में 70 दिन.
4. 30 अप्रैल, 1977 को जगन्नाथ मिश्र के समय में 54 दिन.
5. 17 फरवरी, 1980 को रामसुंदर दास के समय में 112 दिन.
6. 28 मार्च, 1995 को लालू प्रसाद यादव के समय में 7 दिन.
7. 12 फरवरी, 1999 को राबड़ी देवी के समय में 25 दिन.
8. 7 मार्च, 2005 को 262 दिन.