बिहार चुनाव – इस बार जद यू -भाजपा में बड़े -छोटे भाई की चुनौती बढ़ी

डॉ. निशा सिंह

2015 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में बिलकुल अलग था. इस चुनाव में वर्षों के यार जुदा हो गए थे और पुराने धुर विरोधी एक हो गए थे. 20 साल बाद लालू और नीतीश एक साथ मिलकर महा गठबंधन (जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी) के रूप में चुनाव लड़ रहे थे, जबकि दूसरी ओर भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हम पार्टी मिलकर उनका मुकाबला कर रही थीं. चुनाव परिणाम घोषित हुए तो महा-गठबंधन को बहुमत मिला, सरकार भी बनी, लेकिन दोनों का साथ ज्यादा दिन नहीं चल सका और जुलाई 2017 में नीतीश महा-गठबंधन से अलग होकर फिर से एनडीए में आ गए. इस बार के चुनाव में जदयू, भाजपा, लोजपा और हम पार्टी साथ हैं तो वहीं रालोसपा एनडीए से अलग होकर महा-गठबंधन का हिस्सा है.

पिछले विधान सभा चुनाव के पहले जदयू बड़े भाई की भूमिका में थी, लेकिन इस बार भाजपा छोटे भाई की भूमिका में नहीं रहना चाहती है. राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों दल बराबर- बराबर सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. बात बन भी जाए तो मुश्किल यह है कि लोजपा और दूसरी सहयोगी पार्टियों को कितनी सीटें दी जाए. पिछले चुनाव में 52 सीटों पर जदयू और भाजपा में सीधी टक्कर यानी यहां दोनों पार्टियां पहले और दूसरे नंबर पर थीं. इनमें से 28 जदयू और 24 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं. 22 सीटों पर तो हार जीत का अंतर 10 हजार से भी कम था. जबकि जदयू और लोजपा 22 सीटों पर आमने- सामने थीं, इनमें से 21 पर जदयू को जीत मिली थी. इस बार लोजपा की पूरी कोशिश है कि उसे कम से कम वो सीटें तो मिले ही जिस पर पिछली बार उसने चुनाव लड़ा था, लेकिन मुश्किल यह है कि जदयू अपनी जीती हुई सीटें इतनी आसानी से कैसे देगी.

आखिरी बार 2010 में भाजपा और जदयू एक साथ लड़ी थीं. उस वक्त भाजपा ने 102 और जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इनमें से 115 पर जदयू को और 91 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. रालोसपा 14 सीटों पर राजद और कांग्रेस से लड़ी थी. पिछली बार रालोसपा एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन इस बार वह महा-गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. 2015 में 14 सीटों पर रालोसपा का मुकाबला राजद और कांग्रेस के साथ हुआ था, जिसमें से सिर्फ दो सीटों पर रालोसपा को जीत मिली थी. पिछले चुनाव में 8 सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर एक हजार से भी कम था. इनमें से तीन राजद को, तीन भाजपा को और एक-एक जदयू और सीपीआई को मिली थी. तरारी सीट पर जीत-हार का अंतर 272 तो चनपटिया सीट पर सिर्फ 464 वोट का अंतर था.

21 सीटों पर भाजपा 15 से ज्यादा साल से लगातार जीत रही है

कुम्हरार, बनमनखी और गया टाउन, ये तीन सीटें भाजपा की गढ़ रही हैं. यहां भाजपा 1990 से चुनाव जीत रही है, वहीं बांकीपुर, दानापुर और पटना साहिब सीट पर भाजपा 1995 से जीत रही है. रामनगर, हाजीपुर, चनपटिया और रक्सौल सीट पर भाजपा 2000 से हारी नहीं है. इसके अलावा 11 ऐसी सीटें जहां भाजपा 2005 से लगातार जीत रही है. इस तरह कुल 243 सीटों में 21 पर भाजपा 15 या उससे ज्यादा साल से लगातार जीत रही है.

जदयू 17 सीटों पर 2005 से लगातार चुनाव जीत रही है.

इनमें लौकहा, त्रिवेणीगंज,जोकिहाट,सिंघेश्वर और महाराजगंज जैसी सीटें शामिल हैं. हालांकि आंकड़ों के इस मुकाबले में कांग्रेस और राजद के हिस्से में कुछ खास नहीं है. कांग्रेस सिर्फ एक सीट (बहादुरगंज) पर तो राजद दरभंगा ग्रामीण और मनेर सीट पर 2005 से जीत रही है.

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