नई दिल्ली ।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने प्रसिद्ध कलाकार दीपक गोरे के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते के अंतर्गत दीपक गोरे ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन और राज्याभिषेक को दर्शाने वाली अपने 115 तैल चित्रों (ऑयल पेंटिंग) के असाधारण संग्रह को औपचारिक रूप से आईजीएनसीए को दान कर दिया है. यह महत्वपूर्ण कदम छत्रपति शिवाजी महाराज के भव्य राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) में आयोजित प्रदर्शनी की शानदार सफलता के ठीक दस दिन बाद उठाया गया है.
समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के अवसर पर दीपक गोरे ने कहा, “यह एमओयू हमारे सांस्कृतिक धरोहर को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. यह समझौता यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है कि शिवाजी महाराज की धरोहर जीवंत और सुलभ बनी रहे.”
आईजीएनसीए के सदस्य सचिव ने कहा, “ये पेंटिंग्स महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रिकॉर्ड हैं. संस्कृति मंत्रालय और आईजीएनसीए को इसे प्राप्त कर अत्यंत प्रसन्नता अनुभव कर रहे हैं. हमारे लिए यह गर्व का विषय है और भविष्य की पीढ़ियों को इससे लाभ मिलेगा.”
आईजीएनसीए और दीपक गोरे के बीच यह सहयोग भारत की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य को आगे बढ़ाने वाला है. अब आईजीएनसीए में स्थायी रूप से संग्रहित ये चित्र प्रेरणा और शिक्षा का स्रोत बने रहेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि छत्रपति शिवाजी महाराज की धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए बनी रहे.
‘छत्रपति शिवाजी महाराज: महान राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ का उत्सव’ शीर्षक वाली इस प्रदर्शनी ने काफी लोगों को आकर्षित किया है. इसके माध्यम से दर्शकों को इस महान योद्धा के अद्वितीय युग की यात्रा करने का अवसर मिला। ऐतिहासिक सटीकता और कलात्मक भव्यता के मिश्रण से तैयार किए गए ये विशाल कैनवस श्री दीपक गोरे की सोच का परिणाम थे, जिनकी दृष्टि 1996 में लंदन और पेरिस के संग्रहालयों की यात्रा से प्रेरित थी। प्रसिद्ध पिता-पुत्र कलाकार जोड़ी श्रीकांत चौगुले और चौगुले के साथ साझेदारी और महान इतिहासकार पद्म विभूषण बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे के मार्गदर्शन में इस परियोजना को पूरा होने में दो दशकों से अधिक समय लगा है.
2016 में अनावरण के साथ ही ये चित्र तब से भारत की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं. संग्रह की शुरुआत एक मार्मिक दृश्य से होती है, जहां चौदह साल के शिवाजी को उनके पिता शाहजी से भगवा झंडा प्राप्त होता है, जो स्वराज्य का सपना दिखाता है. इसके बाद की कथा शिवाजी के प्रमुख सैन्य विजय, रायगढ़ किले को सुदृढ़ करने में उनकी रणनीतिक कुशलता और व्यापार एवं सार्वजनिक कल्याण में उनकी दूरदर्शी नेतृत्व को प्रदर्शित करती है. प्रदर्शनी उनके यूरोपीय प्रभुत्व के खिलाफ विद्रोह को भी उजागर करती है, जो उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की एक झलक प्रस्तुत करती है.