बिहार का एक ऐसा गांव जहां हर दस में दो लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं

डॉ. निशा सिंह

अमेरिका, फ्रांस, जापान जैसे देशों में महिलाएं पढ़-लिख कर नौकरी करके स्वयं फैसला लेती हैं कि वे आगे शादी करेंगी या नहीं. इन देशों में तो लिव-इन में रहने के बाद लड़कियां फैसला लेती हैं कि वो आगे क्या करेंगी, इसी क्रम में इन विकसित देशों में बहुत-सी लड़कियां अविवाहित रहना पसंद करती हैं. लेकिन बिहार में भी एक ऐसा गांव हैं, जहां 10 में से 2 लड़किया ताउम्र अविवाहित रह जाती हैं. सुनने में भले अटपटा लगे, लेकिन यही सच है. हालांकि यह फैसला लड़कियों के खुद का नहीं होता है और न ही ये लड़कियां पढ़-लिख कर इस लायक होती हैं कि अपना फैसला खुद ले सकें. इन लड़कियों के अविवाहित रहने का फैसला समाज की गलत रुढियां और परंपराएं हैं.

यह गांव बिहार के सुपौल जिले में कोचगामा पंचायत में है, जो नेपाल बॉर्डर से मुश्किल से दस किलोमीटर की दूरी पर है. मुस्लिम बहुल आबादी वाले इस क्षेत्र में ज्यादातर लोग मुस्लिम शेरशाहबादी समुदाय के हैं. इन शेरशाहबादी मुस्लिमों में परंपरा है कि लड़की का रिश्ता परिवार वाले नहीं खोजेगें, रिश्ता लड़के वालों की तरफ से आता है. ऐसे में जो लड़की खूबसूरत नहीं होती या फिर जिसका परिवार दहेज देने में असमर्थ होता है, उसका रिश्ता नहीं आता है और उसे ताउम्र अविवाहित रहना पड़ जाता है.

शेरशाहबादी समुदाय में कितनी अविवाहित महिलाएं हैं, इसका कोई सही आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है। हालांकि ‘रुकतापुर’ नाम की चर्चित किताब में पत्रकार पुष्यमित्र ने लिखा है कि सिर्फ कोचगामा पंचायत में ही 35 साल से ऊपर की अविवाहित महिलाओं की संख्या 140 से ज्यादा थी.

कोचगामा पंचायत के दो बार मुखिया रह चुके शाह जमाल बताते हैं कि कुछ साल पहले इस समस्या को सुलझाने के लिए पूरे समुदाय ने एक बैठक बुलाई थी, जिसमें तय किया था कि अब लड़की वालों को भी रिश्ता खोजने की पहल करना शुरू कर देनी चाहिए. लेकिन समस्या यह है कि जिन लड़कियों को मदरसा से बाहर पढ़ने ही नहीं दिया गया हो, ताउम्र अविवाहित रहने वाली महिलाओं को पिता के संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता हो, उनकी क्या हालत होगी, क्या उनका परिवार आगे बढ़कर मदद करेगा.

यहां की महिलाएं शादी और अपना परिवार का सपना देखते-देखते बूढ़ी होकर मर जाती हैं, लेकिन किसी को इनकी परवाह नहीं होती है. एक तरफ पश्चिम देशों में विकास और महिलाओं को मिली आजादी के कारण महिलाएं विवाह नहीं करने का फैसला लेती हैं तो दूसरी तरफ पिछड़ेपन और बंधन में जकड़ी बिहार के सुपौल की महिलाएं विवशता में ताउम्र अविवाहित रह जाती हैं.

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