दिल्ली: डॉ. निशा सिंह
Uniform Civil Code : समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर मुसलमान बंट गए हैं. मुसलमानों के हितों की रक्षा करने वाला एक गुट सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड इसके समर्थन में उतर आई है, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड सहित अन्य मुस्लिम संगठन इसके विरोध में हैं. सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता अर्थात् एक देश, एक कानून का पूरी तरह से समर्थन करते हुए कहा है कि विधि आयोग को इसे जल्द-से-जल्द कानूनी रूप देना चाहिए, क्योंकि यह आज समय की जरूरत है. बोर्ड ने कहा कि कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और धर्म के नाम पर लोगों को नहीं बंटना चाहिए, सभी को इसके समर्थन में आना चाहिए.
सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष आफताब आलम हाशमी ने प्रेस रिलीज जारी करके कहा है कि जनहित तथा शक्तिशाली राष्ट्र के लिए मोदी सरकार के इस संभावित फैसले स्वागत योग्य है तथा इस फैसले के लिए सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड सरकार तथा विधि आयोग का हमेशा आभारी रहेगा. उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण की राजनीति से ऊपर उठकर विकास पर अब लोगों को आना चाहिए और इस UCC के मूल में निहित भावनाओं को समझना चाहिए. बोर्ड के सदस्यों ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इंग्लैण्ड जैसे विकसित देशों सहित कई इस्लामिक देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। वहां के सभी लोगों के लिए एक समान कानून है और लोग समान रूप से इसका पालन करते हैं तो फिर भारत के मुसलमानों को इस पर संदेह क्यों है?
UCC पर मुसलमानों को डराया गया: सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड
सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों कारी अबरार, मजाहिर खान, रऊफ पाशा, मौलाना हमीदुल्ला, मिर्जा नदीम बेग, शवाना खान, स्वालिहा, रेशमा खान, नजमा अंसारी, आदि ने कहा कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने पिछले कई सालों में यूसीसी के नाम पर लोगों को डराया है, उनके मन में गलतफहमी तथा आशंकाएं पैदा की है जो मिथ्या है, क्योंकि यह सब वोट बैंक की राजनीति है. यह कानून नफरत को मिटायेगा तथा भाईचारा लाएगा, जबकि इसका विरोध धर्मों तथा जातियों एवं समुदायों में कटुता और हिंसा को पैदा करेगा. बोर्ड ने कहा है कि ऐसे राष्ट्रवादी मुद्दों पर मुसलमानों को भड़काने वाले मुसलमान तथा इस्लाम के दुश्मन हैं, इनका विरोध किया जाना चाहिए तथा समान नागरिक संहिता का यह बोर्ड पूरी तरह से समर्थन करता है.
22वें विधि आयोग ने UCC पर धार्मिक तथा सामाजिक संगठनों से राय मांगी
बता दें कि जून 2023 में समान नागरिक संहिता पर 22वें विधि आयोग ने धार्मिक तथा सामाजिक संगठनों से एक महिने के अंदर परामर्श मांगा ताकि उसके आधार पर आगे की तैयारी कर सके. अब देश भर के धार्मिक तथा सामाजिक संगठन इस पर अपनी राय विधि आयोग को भेज रहे हैं। गौरतलब है कि दिसंबर, 2022 में भारतीय जनता पार्टी के सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने समान नागरिक संहिता विधेयक राज्यसभा में पेश किया, जिसके पक्ष में 63 तथा विरोध में 23 मत पड़े. हालांकि इससे पहले भी वर्ष 2016 में विधि आयोग ने इस विषय पर लोगों से परामर्श मांगा था, जिसके रिपोर्ट को आयोग ने वर्ष 2018 में सार्वजनिक किया था और कहा था कि भारत में अभी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है. वर्ष 2019 में पहली बार याचिका दायर की गयी थी कि राष्ट्रीय एकीकरण तथा लैंगिक न्याय, समानता एवं महिलाओं की गरिमा को बढ़ावा देने के लिए समान नागिरक संहिता का गठन किया जाए.
विश्व के इन देशों सहित भारत के एक राज्य में UCC लागू
समान नागरिक संहिता को लेकर उत्तराखण्ड सरकार ने मसौदा तैयार कर लिया है और जल्द ही इसे लागू कर दिया जाएगा. उत्तराखण्ड सरकार ने इसके लिए एक कमेटी गठित की थी, जिसका दावा है कि उसने तेरह महिने से अधिक का समय लगाकर 20 लाख से अधिक लोगों के सुझाव के बाद यह ड्राफ्ट तैयार किया है. भारत में अगर समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करें तो गोवा एक ऐसा राज्य है, जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. गोवा में पुर्तगाल सरकार के समय से ही यह कानून लागू है तथा इसे पुर्तगाली सिविल कोड 1867 के नाम से भी जाना जाता है. 1961 में गोवा की सरकार भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के साथ ही बनी थी. समान नागरिक संहिता पर विश्व की बात करें तो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से लेकर पाकिस्तान, बांग्लादेश, सहित तुर्की, मलेशिया, इंडोनेशिया, आयरलैंड, सूडान, इजिप्ट जैसे मुस्लिम देशों में यह लागू है. गौरतलब है कि भारत के लिए समान नागरिक संहिता कोई नया विषय नहीं है, भारतीय संविधान के भाग चार में नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ‘राज्य भारत के संपूर्ण क्षेत्र में नागिरकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा.’ फिलहाल सरकार संविधान में वर्णित इस प्रावधान को ही लागू करने का प्रयास कर रही है.