दिल्ली: संवाददाता
भारत में वर्तमान में मौलिक अधिकारों और अन्य राहतों के लिए सीधे हाई कोर्ट जाने का चलन बढ़ा है. उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों को देखने से साफ पता चलता है कि चलता है कि कुल दाखिल होने वाले मुकदमों में एक बड़ा हिस्सा रिट याचिकाओं का है. देश के 25 उच्च न्यायालयों में हर साल साढ़े सात लाख तक रिट याचिकाएं दाखिल होती हैं, इनमें पीआईएल भी शामिल हैं. हाई कोर्ट में कुल करीब 60 लाख मुकदमे लंबित हैं, जिनमें 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा रिट याचिकाओं का है.
आपको बता दें कि मूल रूप से रिट याचिका मौलिक अधिकारों को लागू कराने और उनके उल्लंघन पर ही दाखिल की जाती है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में रिट मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य राहतों के लिए भी दाखिल की जा सकती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सिर्फ मौलिक अधिकारों के हनन पर ही रिट याचिका सुनता है.
बता दें कि हाई कोर्ट में रिट याचिकाओं की अच्छी खासी हिस्सेदारी बढ़ी है, लेकिन हर छोटी बड़ी मांग के लिए सीधे हाई कोर्ट में रिट दाखिल करने से मुकदमों की संख्या में बेवजह की बढ़ोत्तरी होती है और इससे निचली अदालत से हाई कोर्ट पहुंचने वाली अपीलों की सुनवाई में देरी होती है. संविधान में पांच तरह की रिट दी गई हैं, जिनके लिए नागरिक सीधे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से राहत पा सकते हैं.
भारत के उच्च न्यायालयों में करीब 7.5 लाख तक रिट याचिकाएं हर वर्ष दाखिल होती हैं
भारत में वर्तमान में 25 हाई कोर्ट हैं जिनके आंकड़े देखने पर पता चलता है कि हर साल हाई कोर्ट में 6.85 लाख से लेकर 7.5 लाख तक रिट याचिकाएं दाखिल होती हैं. आंकड़ों से एक और बड़ा तथ्य सामने आता है कि हाई कोर्ट में दाखिल होने वाली रिट याचिकाओं में 89 फीसद सिविल रिट याचिकाएं यानी दीवानी मुकदमे होते हैं. क्रिमिनल रिट की संख्या कम है. ये डाटा सभी उच्च न्यायालयों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई सालाना रिपोर्ट के आधार पर कुल दाखिल मुकदमों में रिट याचिकाओं का अध्ययन और विश्वेषण कर दक्ष इंडिया संगठन ने निकाले हैं. अब आगे ऐसा ही विश्लेषण सुप्रीम कोर्ट को लेकर भी किया जाएगा. इससे और भी स्पष्ट रूप से आंकड़ें सामने आएंगे.