दिल्ली : डॉ. निशा सिंह
सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने किया ऐतिहासिक फ़ैसला करते हुए गर्भपात केस में अविवाहित महिला को भी विवाहित महिला के बराबर अधिकार दिया है. कोर्ट ने कहा कि Medical Termination of Pregnancy ACT के तहत बिनब्याही माँ को भी वहीं अधिकार मिलेंगे, जो विवाहित महिला को हैं. यानी अविवाहित महिला भी विशेष परिस्तिथियों में गर्भपात करवा सकती हैं. इसमें वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) यानी पत्नी की इच्छा के विपरीत शारीरिक संबंध बनाए जाने के कारण हुए गर्भधारण को भी शामिल किया गया है. यह फैसला बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय क़ानून में अब तक वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को रेप की श्रेणी में नहीं रखा जाता और फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है.
अपना फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि MTP Act के मामले में विवाहित और अविवाहित महिलाओं में भेद करना उचित नहीं होगा. अब हमें आगे की तरफ़ देखने वाली सोच अपनानी होगी और पुरानी सोच कि केवल विवाहित महिला ही शारीरिक संबंध बना सकती है, इसमें बदलाव लाना होगा.
महिला के शरीर पर सिर्फ़ महिला का ही एकाधिकार है- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला के शरीर पर सिर्फ़ महिला का ही एकाधिकार है और वो गर्भपात करवाना चाहती है या नहीं, इसका फ़ैसला सिर्फ़ वही ले सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए आदेश में ये महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि क़ानूनी तरीक़े से गर्भपात करवाने वाली वयस्क महिला से कोई भी ये नहीं कह सकता कि वो अपने परिवार की रज़ामंदी लेकर आए.
गर्भपात के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ महिला की मंजूरी जरुरी, परिवार की नहीं – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी गुरुवार को अपने फ़ैसले में कहा कि आमतौर पर डॉक्टर गर्भपात के समय महिला के परिवार की रज़ामंदी की माँग करते हैं और नहीं होने पर गर्भपात से इनकार कर देते हैं, लेकिन गर्भपात के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ महिला की मंज़ूरी ज़रूरी है. एक महिला अपनी वैवाहिक स्थिति को दूर रखते हुए गर्भधारण कर सकती है. गर्भधारण करना दो वयस्क लोगों की रज़ामंदी से होता है, लेकिन अवांछित या लापरवाही से हुए गर्भधारण की स्थिति में उसका असर सिर्फ़ महिला की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर पड़ता है. ऐसे में ये ज़रूरी है कि गर्भपात करवाना है या नहीं, इसका अंतिम फ़ैसला भी महिला का ही हो.