डॉ. निशा सिंह :
कोरोना वायरस के कारण लोगों की आय और दिनचर्या तो प्रभावित हुई ही है, बच्चों की पढ़ाई बर्बाद हो गई है. नए एक सर्वे के मुताबिक कोरोना के कारण पिछले 18 महीनों में भारत के ग्रामीण इलाकों के 37 फीसदी छात्रों ने स्कूल छोड़ दिया है. ये 37 फीसदी स्टूडेंट देश के 15 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण भारत के सिर्फ 8 फीसदी छात्रों को ही ऑनलाइन शिक्षा मुहैया हुई है. यह सर्वे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जीन द्रेजे की देखरेख में 100 वॉलंटियर्स द्वारा किया गया था.
‘स्कूली शिक्षा पर आपातकालीन रिपोर्ट’ नाम के इस सर्वे के तहत 1300 परिवारों से जानकारी जुटाई गई. सर्वे में कहा गया है कि स्कूल बंद हुए 17 महीने हो चुके हैं और इससे स्कूली छात्रों के लिए विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं. रिपोर्ट में लंबे समय तक स्कूलों को बंद किया जाना अब तक के इतिहास का सबसे लंबा समय कहा गया है. इस काल में देश की स्कूली शिक्षा की जो तस्वीर उभरती है वह बिल्कुल निराशाजनक है.
केवल 28 प्रतिशत ग्रामीण बच्चों को नियमित पढ़ाई
सर्वेक्षण के समय ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 28 प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से पढ़ रहे थे और 37 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल भी नहीं पढ़ रहे थे. एक रीडिंग टेस्ट में शामिल लगभग आधे बच्चे कुछ शब्दों से अधिक पढ़ने में असमर्थ थे. सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि नियमित रूप से पढ़ने वाले, बिल्कुल भी नहीं पढ़ने वाले और शहरी क्षेत्रों में कुछ शब्दों से अधिक पढ़ने में असमर्थ छात्रों के आंकड़े क्रमशः 47 प्रतिशत, 19 प्रतिशत और 42 प्रतिशत थे. यानी तस्वीर बेहद निराशाजनक है.
कोरोना का ग्रामीण छात्रों पर अधिक दुष्प्रभाव
सर्वे के मुताबिक कोरोना का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में साफतौर पर देखा गया है. शहरी क्षेत्रों के 19 फीसदी बच्चों की तुलना में लगभग 37 फीसदी ग्रामीण बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके हैं या बिल्कुल भी नहीं पढ़ रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में एक चौथाई यानी 25 फीसदी बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. इसकी वजह है कि शहरों में एक बड़े हिस्से की स्मार्टफोन तक पहुंच है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आधे परिवारों के पास स्मार्टफोन ही नहीं है. ढेर सारे बच्चों के पास गैजेट नहीं हैं या इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है या डेटा पैक के लिए पैसे नहीं है.
फीस न देने से सरकारी स्कूलों में जाना छात्रों की मजबूरी
लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की फीस देने में असमर्थता के कारण लगभग 26 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में चले गए थे, जिन्होंने पहले निजी स्कूलों में दाखिला ले रखा था. कई अन्य छात्र अभी भी निजी स्कूलों में फंसे हुए हैं, क्योंकि स्कूल ट्रांसफर प्रमाण पत्र देने से पहले पूरी फीस चुकाने पर जोर दे रहे हैं और अभिभावकों की माली हालत खराब हो चुकी है. निजी स्कूलों की पढ़ाई बेहतर होने के बावजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेजना कोरोना का सबसे नकारात्मक प्रभाव है.