वरिष्ठ संवाददाता
बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र सहरसा जिला के महिषी प्रखंड का मैना गांव अचानक मीडिया के सुर्खियों में है. इसकी वजह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पटना इंजीनिरिंग कॉलेज के साथी और वर्तमान में जदयू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंजीनियर नरेंद्र सिंह का पैतृक गांव होना है. मैना गांव की उप-स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली की खबर नेशनल चैनल से लेकर स्थानीय अख़बारों में प्रसारित और लगातार प्रकाशित हो रही हैं. दरअसल कोरोना काल में इलाज के लिए इस पिछड़े इलाके के लोगों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. इस गांव में करीब 70 साल से अधिक समय से चल रहे इस उप-स्वास्थ्य केंद्र पर पहले डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ पदस्थापित थे, लेकिन पिछले कई वर्षों से इस केंद्र पर ताला लगा पड़ा है, यानी इस केंद्र पर इलाज नहीं हो रहा है.
मुख्यमंत्री के बेहद करीबी और राजनीति के भरोसेमंद साथी इंजीनियर नरेंद्र सिंह इन दिनों अपने पैतृक गांव में ही हैं, जहाँ पर क्षेत्र के लोग पहुंचकर इस उप-स्वास्थ्य केंद्र को चालू करवाने, स्वास्थ्य केंद्र में अपग्रेड करने और भवन का जीर्णोद्धार करके कम-से-कम 20 बेड का अस्पताल बनवाने की मांग कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यहाँ के सांसद और विधायक कोई भी सुधि नहीं ले रहे हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लिया संज्ञान – जिलाधिकारी को दिया निर्देश
मैना गांव के उप-स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली को दूर करने को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नरेंद्र सिंह और ग्रामीणों की तरफ से अपील की गयी है. ग्रामीणों की तरफ से बीते 28 मई को मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, सहरसा के जिलाधिकारी को बदहाली की जानकारी देकर इस समस्या को दूर करने का आवेदन दिया गया. इसी दिन आवेदन पर मुख्यमंत्री ने संज्ञान लेकर सहरसा के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि समस्या का निदान किया जाय. हालांकि अभी तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं हो पायी है.
इंजीनियर नरेंद्र सिंह आखिर अपने साथी नीतीश कुमार से क्या चाहते हैं ?
पटना में रहने वाले नीतीश कुमार के दोस्त इंजीनियर नरेंद्र सिंह जदयू के थिंकटैंकर हैं और लाईम लाईट से दूर ही रहते हैं. कोरोना काल में नरेंद्र सिंह जब अपने पैतृक गांव पहुंचे तो ग्रामीण और मीडिया सक्रिय होकर उनसे स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर सवाल पूछने लगे. अपने मित्र के इस गांव में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार पहले भी कई आ चुके हैं और यहाँ की पूरी जानकारी भी रखते हैं. बिहार सवर्ण आयोग के पूर्व-सदस्य और वर्तमान में जदयू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने बताया कि हमारे इस पैतृक गांव का उप-स्वास्थ्य केंद्र बंद है. इससे कोरोना काल में इलाज के लिए लोगों की परेशानी खासतौर पर बढ़ी हुई है. नरेंद्र सिंह ने कहा कि मैना गांव ही नहीं आसपास के गांव के लोग भी पहुंचकर फरियाद कर रहे हैं कि इस स्वास्थ्य केंद्र को जल्द चालू करवाया जाय और डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ पदस्थापित हों ताकि इलाज के लिए लोगों को भटकना नहीं पड़े. उन्होंने कहा कि मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करता हूँ कि मैना उप-स्वास्थ्य केंद्र कि बदहाली को जल्द दूर करें, स्वास्थ्य केंद्रों में अपग्रेड किया जाय और कम से कम 20 बेड का हॉस्पिटल को अभिलंब शुरू किया जाय, तीसरे कोरोना लहर से पहले बिहार के सभी उप-स्वास्थ्य केंद्रों को हर तरह की सुविधा से लेस कर दिया जाए.
मैना गांव उप स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली का कारण है क्या ?
सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर ये उप स्वास्थ्य केंद्र अवस्थित है, जो काफी पुराना है. इस केंद्र की हालत यह है कि यहां होने वाले टीकाकरण का काम भी बगल में स्थित स्कूल में कैंप लगाकर किया जाता है. जर्जर भवन और अफसरों की लालफीताशाही के कारण ये केंद्र आज कब्रगाह के शक्ल की तरह दिखता है. जिले में इस तरह के सैकड़ों केंद्र हैं, जिसमें से जरुरत के हिसाब से कुछ को स्वास्थ्य केंद्रों में अपग्रेड किया गया, लेकिन अफसरों की लालफीताशाही के कारण मैना गांव का उप-स्वास्थ्य केंद्र अब तक बदहाल है. ग्रामीणों का कहना है कि अंग्रेजों के ज़माने से यह उप-स्वास्थ्य केंद्र कागजों पर चल रहा है. पहले यहाँ पर एमबीबीएस डॉक्टर से लेकर नर्स, मेडिकल स्टाफ पदस्थापित थे, जो यही कैंपस में रहते भी थे. इस केंद्र पर आस-पास के क़रीब दो दर्जन गांव के लोग और कोशी बांध के भीतर के गांव के निवासी भी इलाज के लिए आते थे, लेकिन समय के साथ यह केंद्र बदहाली के जाल में फंस कर पूरी तरह बंद हो गया, जिसके कारण लोग को इलाज के लिए भटक रहे हैं . दुर्भाग्य की बात ये है कि सरकारी फाइलों में आज भी ये केंद्र चालू है. चालू केंद्र के नाम पर लाखों का खर्च भी सरकारी फाइलों में हो रहा है. 15 साल पूर्व चिकित्सक के ट्रांसफर हो जाने के बाद कुछ सालों तक यहां नर्स आती थी, लेकिन अब 7-8 साल से इस उप-स्वास्थ्य केंद्र में ताला लटका हुआ है. आपको बता दें कि सहरसा जिले का मैना गांव शिक्षित गांव की लिस्ट में शामिल हैं. इस गांव में दर्जनों डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, ब्यूरोकेट्स, बैंक अधिकारी, पत्रकार, प्रोफेसर देश -विदेश में सरकारी और निजी सेवा दे रहे हैं जो कभी-कभार अपने गांव आते ही रहते हैं, लेकिन इनका खुद का गांव और स्वास्थ्य केंद्र बदहाल है. फिलहाल इन सभी लोगों ने मिलकर सरकार से इसे सुधारने की अपील की है.