पटना : वरिष्ठ संवाददाता
बिहार में शिक्षा का हाल बुरा है. कोरोना काल में तो और भी हालात बदतर है. गत विधान सभा चुनाव में जॉब देने का मुद्दा काफी चर्चा में रहा. नितीश (जेडीयू), बीजेपी और राजद ने आगे बम्पर बहाली करने का आश्वासन दिया था, मगर अब हालत ये है कि इस मुद्दे पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. बिहार के कॉलेजों में शिक्षकों के पद अभी भी खाली पड़े हैं. कुछ कॉलेजों को छोड़कर अधिकांश में पढाई होती ही नहीं है. शिक्षक अपना अटेंडेंस बनाकर वेतन लेते है. बिहार में 2018 में बनाई गई तीन यूनिवर्सिटी में कुलपतियों के पद खाली पड़े हैं. अब लिस्ट में एक और नाम मुंगेर विश्वविद्यालय का जुड़ गया है. मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति रंजीत कुमार वर्मा का कार्यकाल समाप्त हो गया. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना के कुलपति गुलाब चंद राम जायसवाल ने कार्यकाल समाप्त होने से कुछ महीने पहले जनवरी में ही अपना पद छोड़ दिया था.
आपको बता दें कि पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश सिंह ने पिछले साल सितंबर में उत्तर प्रदेश में एक नए काम मिलने की वजह से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके अलावा टीएम भागलपुर विश्वविद्यालय की कुलपति नीलिमा गुप्ता मुंगेर विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रही हैं. जबकि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (दरभंगा) के वीसी एसपी सिंह के पास पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार है, दोनों विश्वविद्यालयों में प्रो-वीसी का कार्यकाल समाप्त हो गया है. पूर्णिया विश्वविद्यालय में प्रो-वीसी आरएस यादव कार्यवाहक वीसी के तौर पर कार्यरत हैं. खाली पड़े शीर्ष पदों की वजह से बिहार को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा प्रमाणपत्र मिलने की संभावना प्रभावित हो सकती है. एनएएएसी ने पहले ही देश के सभी कॉलेजों के प्रमाणन के लिए 2022 की समय सीमा निर्धारित की हुई है.
बिहार इसमें काफी पीछे है और यहां तक कि प्रमाणन के लिए जाने वाले राज्य के सर्वश्रेष्ठ कॉलेज भी शिक्षकों की कमी, सुविधाओं और छात्रों की खराब प्रतिक्रिया के कारण पिछड़ रहे हैं. 2010 में स्थापित की गई आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी (AKU) में अरुण कुमार अग्रवाल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 20 सितंबर, 2020 से कोई नियमित वीसी नहीं हैं. इसकी स्थापना सभी तकनीकी संस्थानों को एक छत के नीचे लाकर विनियमित करने के लिए की गई थी. तब से एकेयू के प्रो-वीसी सैयद मोहम्मद करीम कुलपति का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं. हालांकि वो भी, कुछ महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं, यानी वो अब कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते हैं. राजभवन ने सितंबर 2020 के विज्ञापन को ‘अपरिहार्य कारण से’ रद्द करने के बाद इस साल जनवरी में एकेयू में वीसी की नियुक्ति के लिए नए सिरे से आवेदन आमंत्रित किए थे. जिन अभ्यर्थियों ने पहले आवेदन किया था, उन्हें नए सिरे से आवेदन करने के लिए कहा गया था. इसकी अंतिम तिथि एक मार्च थी.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भी कुलपति के बिना है, क्योंकि इस साल की शुरुआत में अजोय कुमार सिंह का कार्यकाल समाप्त हो गया था. तब से निदेशक, बीएयू, आरके सोहाना, कार्यकारी कुलपति का पदभार संभाल रहे हैं. पिछले साल नवंबर में एचएन प्रसाद के अचानक इस्तीफे के बाद पटना में स्थित नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (एनओयू) में भी अंतरिम उपाय के तहत कार्य जारी है. 2017 में स्थापित पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रो-वीसी नहीं है. कामेश्वर सिंह दरभंगा विश्वविद्यालय (केएसडीएसयू) की स्थिति भी इसी तरह की है.