न्यूज डेस्क
हेल्थमेडिकल साइंस में नए धातु की खोज की गई है जिसकी मदद से 40 फीसदी अधिक मजबूती से टूटी हड्डियां जुड़ जाएंगी. भारत में पहली बार थ्री-डी मॉडल वाले इंप्लांट बनाने की तकनीक विकसित की गयी है. इंप्लांट हड्डी को जोड़ने के लिए विकल्प के तौर पर धातु से बनी रॉड, प्लेट या अन्य संरचना को कहते हैं. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एम्प्री) भोपाल द्वारा विकसित इस तकनीक से स्टील या टाइटेनियम के साथ सिर्फ 1 फ़ीसदी कार्बन आधारित धातु ग्रैफीन मिलाकर इंप्लांट को 40 फ़ीसदी तक अधिक मजबूत बनाया जा सकेगा. इस इंप्लांट हल्के बनाये जा सकेंगे, जो बिल्कुल हड्डी की तरह कार्य करेगा.
ग्रैफीन धातु की विशेषताएं
अभी तक इंप्लांट स्टील या टाइटेनियम से ही बनाये जाते हैं, लेकिन अब यह ग्रैफीन से बनाया जाएगा. ग्रैफीन ज्यादा महंगी धातु नहीं है, इसलिए कीमत में भी कोई अंतर नहीं आयेगा, बल्कि भविष्य में इंप्लांट के दाम में कमी आने की भी संभावना है. ग्रैफीन से सर्जिकल उपकरण भी तैयार किये जा सकेंगे. ग्रैफीन के इस्तेमाल से इंफेक्शन का भी खतरा नहीं होगा, क्योंकि ग्रैफीन बैक्टीरिया, वायरस और अन्य जीवाणुओं के लिए ब्लेड की तरह काम करता है. यह जीवाणु की ऊपरी दीवार काट देता है, जिससे उसे ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और वह मर जाते हैं. अगर मजबूती और दूसरी विशेषताओं की बात की जाए तो स्टील की मजबूती 1.3 गीगापास्कल्स होती है और ग्रैफीन की मजबूती 130 गीगापास्कल्स है, यानी स्टील से यह 130 गुना अधिक मजबूत है. इसकी उष्मा की चालकता तांबे के मुकाबले 200 गुना ज्यादा है, चालकता से यही मतलब है कि इसके तापमान में कभी बदलाव नहीं आएगा.
भारत इंप्लांट की थ्री-डी तकनीक विकसित करनेवाला तीसरा देश बना
अभी तक दुनिया में इंप्लांट की थ्री-डी तकनीक अमेरिका और चीन के पास थी. भारत भी अब सूची में शामिल हो जायेगा. इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर एम्प्री और एम्स के बीच जल्द ही एक एमओयू होने की उम्मीद है. एम्प्री व्यावसायिक उपयोग के लिए कंपनियां तलाश रहा है. इंप्लांट की थ्री-डी तकनीक विकसित करनेवाला भारत दुनिया का पहला देश होगा.
इंप्लांट की थ्री-डी तकनीक के काम करने की विधि
सबसे पहले शरीर की जितनी हड्डी को बदलना है उसका थ्री-डी मॉडल बनाया जाएगा. थ्री डी मॉडल बनाने के लिए सीटी स्कैन का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें फोटो की तरह नेगेटिव इमेज बनाई जाएगी. इस इमेज के अनुरूप शरीर में इंप्लांट लगाया जाएगा.