पटना – शिवपूजन सिंह
बिहार में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर कांग्रेस एमएलसी डॉ. समीर कुमार सिंह ने विधान परिषद के बजट सत्र में सरकार पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि जब शिक्षा के लिए बजट लगातार बढ़ता जाता रहा है तो फिर शिक्षा की गुणवत्ता लगातार खराब क्यों होते जा रही है. बिहार में पहले राज्य के सभी वर्गों के लोग सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे, लेकिन अब प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना पड़ रहा है, क्योंकि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता बहुत खराब हो चुकी है. श्री सिंह ने सरकार से कहा कि जब बजट का प्रावधान है तो फिर शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाए. उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना नहीं की जा रही है, बल्कि कमियों पर ध्यान आकृष्ट कर सुधार की कोशिश की जा रही है और इसके लिए विपक्ष भी सरकार का पूरी तरह से साथ देगी.
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का गौरवशाली इतिहास
सदन में श्री सिंह ने बताया कि बिहार का शिक्षा के क्षेत्र में गौरवशाली इतिहास रहा है. अतीत में बिहार के विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया भर के लोग पढ़ने आते थे. श्री सिंह ने बताया कि वो खुद भी पटना के सरकारी विद्यालय में पढ़ें हैं, जबकि उनके पिता तत्कालीन MLA थे, इतना ही नहीं उनके पिता भी सरकारी विद्यालय में पढे थे, जबकि उनके दादाजी सांसद थे, क्योंकि पहले नेताओं और नौकरशाहों को सरकारी शिक्षा पर पूरा विश्वास था.
वर्तमान आंकड़ों में बिहार की शिक्षा शर्मनाक
बिहार में शिक्षा के हालत पर प्रकाश डालते हुए श्री सिंह ने सदन को बताया कि शिक्षा के वार्षिक रिपोर्ट (Annual Status of Education Report -ASER) 2019 के अनुसार 20 राज्यों के गुणवत्ता सूची में बिहार का स्थान 19 पर था. बिहार में केवल 8 प्रतिशत बच्चों को ही स्कूल में किताबें और पाठ्य सामग्री मिलती है और 70 प्रतिशत स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है. ASER – के आंकड़ों के अनुसार बिहार के 92% स्कूलों में कंप्यूटर नहीं है, जबकि 53.8% स्कूलों में चाहरदीवारी नहीं है. यानी बच्चे न तो सुरक्षित हैं और न ही उनका डिजिटलीकरण हो पाएगा. बिहार के 38% स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है. श्री सिंह ने कहा कि इससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरह से नहीं हो पाता है.
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शिक्षामित्र की बहाली से बेहाल हुई बिहार की शिक्षा गुणवत्ता
बिहार में 52 बच्चों के लिए एक शिक्षक है जबकि तय मानक के अनुसार 40 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. मगर बिहार में कहीं 990 छात्रों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक तो कहीं 10 छात्रों के लिए 13 हैं. बिहार शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड्स के मुताबिक राज्य में कुल 4.40 लाख शिक्षक कार्यरत हैं. प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में 3.19 लाख नियोजित शिक्षक हैं, 70000 नियमित शिक्षक. उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में 37,000 नियोजित शिक्षक हैं और 7,000 नियोजित शिक्षक. साल 2000 तक आख़िरी बार बीपीएससी द्वारा नियमित शिक्षकों की बहाली की गई थी. फिर नीतीश सरकार ने शिक्षामित्र बहाल किए, जिनकी गुणवत्ता निम्न कोटि का है.
2003 में पहली बार शिक्षकों का नियोजन हुआ
भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर जारी किए जाने वाले देश भर के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों के डेटाबेस (U-DISE) के अनुसार बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात 1:52 है, जबकि मानक रूप से 1:40 होना चाहिए. नई शिक्षा नीति के अनुसार यह घटाकर 35 कर दिया गया है. इस लिहाज से बिहार में अभी 1.25 लाख शिक्षकों की ज़रूरत है.पंचायत स्तर पर नियोजन की यह प्रक्रिया साल 2009-10 तक चली. तब TET आया, लेकिन तब तक करीब एक लाख शिक्षकों का नियोजन हो चुका था, जिनकी गुणवत्ता निम्न कोटि का है.
बिहार में नियोजित शिक्षकों में से 74 हज़ार से ज़्यादा की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज़ ग़ायब हैं और उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है. नियोजन में हुए फर्ज़ीवाड़े की जांच कर रही निगरानी आयोग की टीम ने पिछले दिनों शिक्षा विभाग के साथ हुई मामले की समीक्षा जांच बैठक में स्पष्ट कह दिया है कि अगर अगली बार भी दस्तावेज़ नहीं उपलब्ध कराए गए तो विभाग और नियोजन इकाई के अधिकारियों समेत तमाम शिक्षकों पर केस दर्ज किया जाएगा.