पटना : डॉ निशा सिंह
पिछले विधान सभा में जदयू के ख़राब प्रदर्शन से हताश नितीश कुमार अब नए प्लान से पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं। बिहार के जातीय राजनीति सियासत की एक ऐसी सच्चाई है जिससे शायद ही कोई पार्टी अछूती हो. इसी सियासत को साधने की कवायद में अब नीतीश कुमार फिर से एक्टिव हुए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सीटें न मिलने के बाद से ही वह लगातार न सिर्फ संगठन को फिर से मजबूत करने जुटे हैं, बल्कि लव-कुश समीकरण को साधने के बाद नजरें अब सवर्ण वोटरों पर भी टिका दी हैं.
जदयू ने बिहार में पहली बार सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन किया है.आपको बता दें कि बिहार में पहली बार सवर्ण आयोग भी बना था जो अभी भंग है। माना जा रहा है कि जल्द ही बिहार सवर्ण आयोग को फिर से एक्टिव किया जा सकता है। इसके पीछे की कवायद पहले की तरह ही सवर्ण वोटरों को न सिर्फ मैसेज देना है, बल्कि लव-कुश समीकरण के साथ-साथ सवर्ण वोटरों को जोड़कर मजबूत समीकरण बनाना भी है. दरअसल, इस समीकरण की वजह भी है. विधानसभा चुनाव में जदयूने तमाम जातियों को साधने की कोशिश की थी, लेकिन पार्टी को उसमें आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली. विधानसभा चुनाव के एक साल पहले ही लोकसभा चुनाव में जदयूने अतिपिछड़ा के साथ-साथ लव-कुश समीकरण और दलित कार्ड खेला था.
इसका फायदा भाजपा के साथ गठबंधन होने पर खूब मिला था, लेकिन विधानसभा चुनाव में इस समीकरण को गहरा धक्का लगा. भाजपा को सवर्णों का भरपूर वोट मिला है. विधानसभाा चुनाव परिणाम के बाद जदयूने संगठन में बड़े फेरबदल किए गए हैं. अब उसकी प्राथमिकता में लव-कुश के साथ-साथ सवर्ण भी आ गए हैं. जो समीकरण जदयू के शुरुआती दौर में था, लव-कुश के साथ तब सवर्ण समुदाय पूरी तरह से नीतीश कुमार के साथ खड़ा हुआ करता था.
नीतीश कुमार और राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने पहली बार सवर्ण प्रकोष्ठ बनाकर यह मैसेज देने की कोशिश की है कि जदयू ने अपने पुराने समीकरण को फिर से तवज्जो देने का प्रयास किया है. यही वजह है कि जदयू कोटा से 4 सवर्णों को मंत्री बनाया गया है, वहीं पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारो के प्रमुख चेहरों में भी सवर्ण समुदाय के नेता ही हैं. ललन सिंह, विजय चौधरी, वशिष्ठ नारायण सिंह, संजय झा जैसे नेता जदयूके प्रमुख फैसलों में शामिल रहते हैं. इसके पहले सवर्ण आयोग का गठन भी देश में सबसे पहले नीतीश कुमार ने बिहार में ही किया था.
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बिहार सवर्ण आयोग के सदस्य रहे और वर्तमान में जदयू के वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंजीनियर नरेंद्र सिंह ने बताया कि नीतीश कुमार की सरकार ने देश में पहली बार बिहार सवर्ण आयोग का घट्न किया था। जिसकी रिपोर्ट के आधार पर आज भी बिहार में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को शिक्षा और सामाजिक स्तर पर लाभ मिल रहा है। इंजीनियर नरेंद्र सिंह ने कहा कि जदयू कभी भी सवर्ण का विरोधी नहीं है। पार्टी का एजेंडा बिलकुल क्लियर है। सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन होने से पार्टी ही नहीं सवर्ण को भी फ़ायदा मिलेगा।
2011 में बिहार में सवर्ण आयोग का गठन किया गया था. 2013 में आयोग ने 11 जिलों के सव्रेक्षण के आधार पर सरकार को एक रिपोर्ट दी थी.बिहार में सवर्ण जातियों के शैक्षणिक व आर्थिक हालात का जायजा लेने के लिए 2011 में सवर्ण आयोग का गठन किया गया था। दरअसल, 2010 का विधानसभा चुनाव ही सवर्ण आरक्षण के नाम पर लड़ा गया था. लालू यादव ने सवर्ण आरक्षण का मुद्दा उठाया था तो बदले में नीतीश कुमार ने भी सुर में सुर मिला दिया. नीतीश दोबारा सत्ता में आए और 2011 में सवर्ण आयोग का गठन किया गया. 27 जनवरी 2011 को कैबिनेट ने सवर्ण आयोग बनाने को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही सवर्ण आयोग बनाने वाला बिहार अकेला राज्य बन गया था. मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से ही लगभग सभी पार्टियां ऊंची जाति के गरीबों की हिमायत करती रही हैं. वे कहती रही हैं कि ऊंची जाति में जो गरीब लोग हैं, उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा मिलना चाहिए.