सी. एन. मिश्रा
बिहार की राजनीति लगातार करवटें ले रही है. नीतीश कुमार अपने कुनबे को बढ़ाने में जुटे हैं तो बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति में लगी है. इधर राजद में खामोशी है तो कांग्रेस में हताशा और निराशा है. बिहार कांग्रेस के दलित नेता और नए प्रभारी भक्त चरण दास के आने के बाद पार्टी में जबरदस्त आक्रोश फ़ैल गया है. कड़ाके की ठण्ड में भक्त चरण दास ने बिहार के तेरह जिलों में प्रोग्राम बनाया जिसके कारण कार्यकर्ता निर्धारित कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर रहे हैं. बिहार कांग्रेस के नए प्रभारी पार्टी गुटबाजी को खत्म करने कि बजाय और भी बढ़ाने में जुटे हैं. बिहार में 80 फीसदी सवर्ण जाति का वोट बैंक वर्तमान में कांग्रेस के पास है. भक्त चरण दास यहाँ आकर सवर्ण नेताओं को जोड़ने की जगह उनके खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं. पार्टी में सवर्ण नेताओं और कार्यकर्ताओं के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगाने के भक्त के फैसले से आक्रोश बढ़ रहा है. कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि दास का रवैया ठीक नहीं है, वह दलित नेताओं को प्रोत्साहित करने के साथ ही सवर्ण नेताओं को हतोत्साहित करने के फार्मूला पर काम कर रहे हैं. राहुल गाँधी ने दास को बिहार क्या भेजा पार्टी में अंतरकलह और भी बढ़ गया है.
शक्ति सिंह गोहिल के जाने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने गैप मैनेजमेंट के तहत भक्त चरण दास को बिहार प्रभारी बनाया है. भक्त चरण दास बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए मूल कांग्रेसी से मिलने की जगह पुराने जनता पार्टी के नेता और दलित और पिछड़े जाति के नेताओं से मीटिंग करते हैं. पिछले दिनों दास ने राजद नेता श्याम रजक और कंचन वाला के साथ मीटिंग किया, जिसे पार्टी विरोधी बताया जा रहा है. बिहार में अभी हालत ये है कि कांग्रेस के विधायकों के टूटने का खतरा बढ़ा हुआ है. कब पार्टी के विधायकों का गुट पाला बदल ले, इस पर संशय बना हुआ है. दरसअल भक्त चरण दास कि रणनीति है किसी भी तरह राहुल गाँधी की नज़र में अपने को एक्टिव दिखाना और इसी पर भक्त काम भी शुरू किया है. बिहार में अभी कांग्रेस का प्रदेश और जिलों में ढांचा नहीं है, जिसके सहारे पार्टी को पटरी पर लाया जा सके. फ़िलहाल जो अभी टीम है उनमें दम नहीं है, जिनके पास क्षमता है इन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी नहीं मिली है.
भक्त चरण दास बिहार क्या पहुंचे, पार्टी में आपसी खींचतान बढ़ गयी है
पार्टी को पटरी पर लाने के मकसद से भक्त चरण दास बिहार क्या पहुंचे, पार्टी में आपसी खींचतान बढ़ गयी है. गोपालगंज में पार्टी की बैठक में भारी हंगामा हुआ. पटना में मीटिंग में दास के खिलाफ आक्रोश देखा गया. पार्टी के खांटी नेताओं में आक्रोश इस बात को लेकर बढ़ रहा है कि बिहार में दास कांग्रेस के अगड़ी जाति के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने कि रणनीति पर काम कर रहे हैं. जब भी मीटिंग होती है सवर्ण नेताओं को बोलने नहीं दिया जाता है. नतीजा पार्टी में असंतोष बढ़ रहा है. आपको बता दें कि बिहार में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक सवर्ण जाति का रहा है. बीजेपी का जब उभार हुआ तो ये वोट बैंक कांग्रेस से छिटककर भाजपा की तरफ जा पहुंचा. फिर भी कांग्रेस के पास ये वोट बैंक अभी मजबूत है. कांग्रेस का दुर्भाग्य रहा है कि सत्येन्द्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व के बाद बिहार में अगड़ी जाति के नेताओं के पास प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी नहीं मिली, नतीजा ये वोट बैंक इधर – उधर होता चला गया.
सवर्ण नेताओं को दरकिनार करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है
बिहार में कांग्रेस लालू -राबड़ी के ज़माने से वैशाखी के सहारे खड़ी दिखी है. कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया गया, जिसका नतीजा हुआ कि सवर्ण वोटर्स सीधे भाजपा में शिफ्ट हो गए या जो बचे हैं वो अपनी साख बचाने में लगे हैं. दलित और पिछड़ी जातियों का वोट बैंक नितीश और लालू यादव की पार्टी में शिफ्ट है. पिछले विधान सभा चुनाव परिणाम को भी देखें तो साफ होता है कि कांग्रेस के पास अभी जो बड़ा वोट बैंक है, वो अगड़ी जाति का है. कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक भी सवर्ण और मुस्लिम का रहा है. लेकिन भागलपुर दंगों के बाद बिहार में मुस्लिम वोट बैंक सीधे लालू यादव के राजद में शिफ्ट हुआ जो बीच में इधर – उधर हुआ, लेकिन फिर भाजपा विरोधी होने के कारण राजद में शिफ्ट हो गया है. बिहार विधान सभा चुनाव परिणाम में ये नजारा दिखा. कांग्रेस की चुनौती ये है कि कैसे अगड़ी जाति और मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में करे? दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के पास बिहार के सही तस्वीर पहले की तरह पेश नहीं कि जा रही है. नतीजा बिहार में सवर्ण जाति के खाँटी नेताओं को प्रमुख जगह नहीं मिलती है. बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा की हालत ये है कि उनको कोई भी नेता मानने को तैयार नहीं है. इस बीच में मदन मोहन झा और उनके खास विधायकों के टूटकर जदयू में शामिल होने की खबरें कांग्रेस को परेशान कर रही है. अगर ऐसा हुआ तो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी की तरह पार्टी को नुकसान हो सकता है.
दलित और पिछड़े नेतृत्व में बिहार कांग्रेस डूबता रहा है
बिहार में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक सवर्ण जाति का रहा है. कांग्रेस बिहार में समय -समय पर प्रयोग करती है. ओडिशा के दलित नेता भक्त चरण दास को बिहार प्रभारी बनाया गया है. भक्त चरण दास बिहार पहुंचकर अपने पुराने दलित नेताओं को प्रोत्साहित करने में जुटे हैं. दास पूर्व में जनता पार्टी से जुड़े नेताओं से खुल्लमखुला पटना में मिलते हैं और अगड़ी – पिछड़ी जाति के बीच खाई को बढ़ाने में जुटे हैं. नतीजा सवर्ण जाति में नाराजगी है. कांग्रेस बिहार में पहले भी अशोक चौधरी और डॉक्टर अशोक राम के नाम पर पार्टी को जमीनी स्तर पर पहुंचने का असफल प्रयास कर चुकी है. अशोक चौधरी ने पार्टी का लुटिया डुबोया तो अशोक राम अपने अस्तिव के लगातार संघर्ष कर रहे हैं. यानी दलित और पिछड़ों के नेतृत्व बिहार के कांग्रेस को स्वीकार नहीं हो पा रहा है. राहुल गाँधी कि टीम को बिहार के बारे में कोई सही तस्वीर नहीं रखी जाती है, जिसका परिणाम है कि कांग्रेस अभी भी बिहार में कोमा में दिखती है.
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