नई दिल्ली – निशा कुमारी
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने क्रिमिनल मामले में दोषी पाए गए नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की वकालत की है. चुनाव आयोग ने इसी पर अपनी राय आज सुप्रीम कोर्ट को दी है.
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि लोग किसी क्रिमिनल मामले में दोषी पाए जाते हैं और उन्हें अदालत से सजा मिलती है तो उन्हें जीवन भर चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगनी चाहिए. इससे राजनीति में अपराधीकरण को रोकने में मदद मिलेगी. हालांकि केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है. मौजूदा कानून के मुताबिक अगर किसी नेता को दो साल या इससे ज़्यादा की सजा मिलती है तो उसके चुनाव लड़ने पर छह साल की पाबंदी होती है. एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि इस कानून को बदल कर आजीवन पाबंदी लगाई जाए.
2014 में दागी सांसदों की संख्या 34 फीसद थी जो कि 2019 में बढ़कर 46 फीसद हो गई है. यानी पांच सालों में दागी सांसदों की संख्या 12 फीसदी बढ़ गई. सितंबर 2018 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी. फैसले में कहा गया था कि उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए. इस फैसले के बाद 10 अक्टूबर, 2018 को चुनाव आयोग ने फार्म-26 में संशोधन करने के बारे में अधिसूचना जारी की थी और सभी राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को आपराधिक पृष्ठभूमि प्रकाशित करने का निर्देश दिया था.
भारत में अपराधियों को अदालती सजा का फीसद सिर्फ 46 है, जबकि यूएस में 93 फीसदी है
सवाल है कि इस देश में कानून का शासन क्यों कमजोर है? सामान्य अपराधों में इस देश में अदालती सजा का 46 प्रतिशत क्यों है, जबकि यह आंकड़ा अमेरिका में 93 प्रतिशत और जापान में 99 प्रतिशत है? जवाब स्पष्ट है कि जब न्यायिक आपराधिक प्रक्रिया से अपराधियों को सजा नहीं मिल पाती तो लोग इन अपराधियों से भयभीत और प्रभावित होने लगते हैं. कई बार पीड़ित व्यक्ति कोर्ट के बजाय इन बाहुबलियों की शरण में चले जाते हैं.
आज देश की अनेक जगहों पर अपने-अपने समुदायों के अपने अपने बाहुबली पैदा हो गए हैं. वे खास समूह में लोकप्रिय हैं. उन्हें राजनीतिक दल टिकट दे देते हैं. एक दल नहीं देगा, दूसरा दे देगा. कोई नहीं देगा तो वे निर्दलीय उम्मीदवार बन जाएंगे. दरअसल भारत में अपराध करते समय लोगों को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता और शिथिलता के कारण उन्हें दण्ड नहीं मिलेगा और वो आगे राजनीति में नाम करेंगे.
चुनाव सुधार पर सुनवाई न होने से संसद में दागी सांसदों की संख्या 43 फीसद हो गई
राजनीति में अपराधियों एवं धन का प्रभाव 1967 के आसपास से ही बढ़ने लगा था. हालांकि तभी से इसके खिलाफ आवाजें भी उठती रही हैं, फिर भी मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की गई! चुनाव आयोग इस बीच समय-समय पर चुनाव सुधार से संबंधित सुझाव देता रहा, अब तक चुनाव आयोग 40 सुझाव भारत सरकार को भेज चुका है, पर अफसोस अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई. नतीजतन संसद में अब दागी सांसदों की संख्या 43 प्रतिशत हो गई है, जो 2004 में 24 प्रतिशत थी. ऐसे में लोकसभा के अगले तीन-चार आम चुनावों के परिणामों का अनुमान लगा लीजिए. पिछले 16 सालों में यह आंकड़ा 24 से बढ़कर 43 यानी 19 प्रतिशत बढ़ी.
हालांकि 1997 में संसद में सर्वसम्मत से प्रस्ताव पास कर राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता प्रकट की गई थी और उसे रोकने की कोशिश का संकल्प लिया गया था, पर हुआ कुछ नहीं. दरअसल वे नेताओं के घड़ियाली आंसू थे. सभी दल उपर से भले ही अपराधियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं, लेकिन जब चुनाव के समय में टिकट देने की बात आती है तो धनबल और बाहुबल को महत्व देते हैं और ऐसे बाहुबली टिकट पाकर चुनाव जीत भी जाते है. जब सदन में ऐसे अपराधी चरित्र वाले लोग पहुंचते हैं तो राजनीति पर इसका गलत प्रभाव पड़ता है और पूरी व्यवस्था बेकार होने लगती है.
जनता में सदाचरण और नैतिकता का प्रचार करके इस पूरी समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है. राजनीति समाज की सेवा का कार्य है, इसमें केवल ईमानदार और साफ चरित्र वाले लोगों को ही आने का मौका दिया जाना चाहिए. नेताओं और जनप्रतिनिधियों से संबंधित मामलों में जल्द न्यायिक प्रक्रिया को पूरा किया जाना चाहिए, ताकि दोषी व्यक्ति आगे चुनाव न लड़ सके और ईमानदार व्यक्ति छूटकर बाहर अपने दायित्वों को पूरा कर सके.