डॉ. निशा कुमारी
उत्तर प्रदेश में 9 नवंबर को राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी. यूपी में किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होगी. लेकिन इसके पहले ही बसपा के 18 विधायकों में सात बागी हो गए है. मायावती ने कहा कि सपा ने हमारे विधायकों को तोड़ा है जिसका खामियाजा उन्हें आगे भुगतान पड़ेगा. बसपा प्रमुख मायावती ने बागी रुख अख्तियार करने वाले अपने सात विधायकों को पार्टी से निकाल दिया है. इन सात विधायकों में तीन मुस्लिम, दो पिछड़ा वर्ग, एक दलित और राजपूत विधायक शामिल हैं. बसपा के बहुजन के फॉर्मूले में दलित, पिछड़े और मुस्लिम ही आते हैं. ऐसे में तीनों ही वर्ग के विधायकों के बागी रुख अपनाने और सपा के साथ उनकी बढ़ती नजदीकियों से बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण को गहरा झटका लगा है.
मायावती ने बागी होने वाले जिन विधायकों को निलंबित किया है, उसमें असलम राइनी (भिनगा-श्रावस्ती), असलम अली (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), सुषमा पटेल(मुंगरा बादशाहपुर) और वंदना सिंह (सगड़ी-आजमगढ़) शामिल हैं. हालांकि बसपा विधायकों के इस बगावत का सपा को तत्काल कोई बड़ा लाभ होने नहीं जा रहा लेकिन 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले इसे बड़े सियासी घटनाक्रम के रूप में माना जा रहा है.
बसपा ने 2017 विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीती थीं, लेकिन एक के बाद एक विधायकों के बागी तेवर अपनाने से पार्टी का आंकड़ा इकाई के अंक में सिमट गया है. बसपा के 18 विधायकों में सात बागी होने के बाद अब पार्टी के केवल 11 विधायक रह गए है.
बसपा के सात विधायकों तोड़ना सपा को भारी पड़ेगी- मायावती
मायावती ने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा है. मायावती ने कहा कि हमारे सात विधायकों को तोड़ा गया है. सपा की यह रणनीति भारी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि बसपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए सपा के साथ हाथ मिलाया था.
बीएसएपी अध्यक्ष मायावती का मानना है कि समाजवादी पार्टी अपने परिवार की लड़ाई के कारण, बसपा के साथ ‘गठबंधन’ लोकसभा चुनाव में अधिक लाभ नहीं ले सकी थी. लोकसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी ने बातचीत करना बंद कर दिया था. इस वजह से हमने भी समाजवादी पार्टी से दूरी बना ली. मायावती ने कहा कि भाजपा से मिले होने का आरोप गलत है. मायावती ने कहा कि हम 1995 की घटना को भूला कर आगे बढ़े. चुनाव में सपा को लाभ नहीं मिला. चुनाव बाद हमने कई बार फोन किया, लेकिन सपा ने फोन नहीं उठाया. 1995 के केस को वापस लेना गलत फैसला था. अभी भी 2 जून, 1995 की टीस बकरार है. माया ने कहा कि बसपा कभी भी बहुजन के हितों की राजनीति से अलग नहीं होगी.
सपा बसपा के रिश्ते कई बार बने और बिगड़े. पहले कांशीराम मुलायम सिंह यादव की दोस्ती हुई, फिर गेस्ट हाउस कांड हो गया तो मायावती व मुलायम सिंह यादव के रिश्ते बेहद बिगड़ गए. तल्खी इतनी आ गई कि बातचीत तक बंद हो गई. इस तल्खी को कम करने का काम अखिलेश यादव ने किया. भाजपा को रोकने के लिए पुरानी कडवाहट भुलाते हुए मायावती व अखिलश यादव साथ आए. मुलायम सिंह यादव ने इस पर अपनी सहमति दे दी. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन दोनों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. सपा की सीटें दस से पांच हो गईं, जबकि बसपा जीरो से दस पर पहुंच गई. इसके बाद भी बसपा व सपा की दूरी बढ़ने लगी.
बसपा और सपा में दोस्ती दुश्मनी की कहानी लम्बी है
उत्तर प्रदेश में वर्ष 1993- सपा बसपा ने मिल कर चुनाव लड़ा और सरकार बनाई. मुलायम सिंह यादव बसपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बने.
वर्ष 1995
इसी साल दो जून को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हुआ. सपा बसपा के बीच बढ़ती तल्खी के बीच सपाईयो ने बसपाईयो पर हमला कर दिया. गेस्ट हाउस में मायावती भी ठहरी थीं. यह कांड काफी चर्चित रहा. इसके बाद सपा बसपा के बीच दुश्मनी हो गई जो 2019 में आकर खत्म हुई.
वर्ष 2019
इस बर्ष 12 जनवरी को 24 साल पुरानी दुश्मनी भुलाते हुए मायावती व अखिलेश ने लोकसभा चुनाव की जीत के लिए चुनावी गठबंधन का ऐलान किया. हालांकि अखिलेश के इस फैसले के साथ मुलायम सिंह नहीं थे, लेकिन भाजपा को रोकने के लिए उन्होंने हरी झंडी दे दी थी. लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रत्याशियों की जीत और सपा की हार के बाद इसी साल 24 जून को मायावती ने सपा से संबंध तोड़ने का ऐलान किया. कहा अब आगे से बसपा सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ेगी.
वर्ष 2020
27 अक्टूबर को सपा ने बसपा के राज्यसभा प्रत्याशी को संसद में जाने से रोकने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी को उतार दिया. 29 अक्टूबर को मायावती ने अखिलेश यादव से मुलाकात करने वाले अपने सात बागी विधायकों को निलंबित किया साथ ही सपा को सबक सिखाने का भी ऐलान किया. यानि अब फिर सपा और बसपा के बीच राजनीतिक लड़ाई अब देखने को मिलेगी.