शिवपूजन सिंह
(मेरी कलम से)
90 के दशक में पटना की भीड़-भाड़ वाले इलाके में शाम आते-आते सन्नाटा पसर जाता था. आम लोग अपने घर में चले आते थे. डर छिनत्तई, लूट और जान का होता था. उस वक्त आरजेडी की सरकार को देश में जंगल राज से नवाजा जाता था. खौफ के चलते पलायन करके लोग दूसरे प्रदेशों में रोजी-रोटी के लिए चले जाते थे. कारोबारी अपना कारोबार बिहार में करने से कतराते थे. ‘बिहारी’ शब्द दूसरे राज्यों में एक मजाक का विषय हुआ करती थी. दरअसल, अपराध का ग्राफ और अपराधी लगातार बिहार की छवि को बट्टा ही लगाते थे.
लेकिन, वो जमाना और था, आज कुछ और है. गंगा में काफी पानी बह चुका है. जमाने ने करवट ले ली है. आज आरजेडी का कुनबा लालू के बगैर बेजार नज़र आता है. तेजस्वी-तेजप्रताप विरासत को आगे बढ़ाने और खोई सल्तनत की वापसी के लिए ताकत झोंके हुए हैं.
हालांकि, टिकट बंटवारें में जो तस्वीर उभर कर सामने आई, इससे एकबार फिर पार्टी में वही पुरानी छवि उभर कर आ रही है. यहां एकबार फिर भाई-भतीजावाद और पुत्र मोह दिखता ही है,साथ ही बाहुबली -अपराधी के गठजोड़ भी दिखाई पड़ते हैं. वंशवाद और विरासत सहेजने का फलसफा भी बंया होता है. सोचने वाली बात ये है कि लालू के बेटे तेजस्वी कई मौके पर 15 साल लालू के राज में हुई गलतियों की माफी भी मांग चुके हैं. लेकिन, हकीकत की जमीन पर उतरे, तो जो आरजेडी पहले थी, वैसी ही आज भी दिख रही है, उसकी सोच में उतना फर्क नहीं दिखता. टिकट के बंटवारे ये बानगी नजर आती है.
राजद में टिकट पानेवाले प्रत्याशी
इसके कुछ उदाहरण देखे तो, जेल में बंद अनंत सिंह को मोकामा से आरजेडी ने टिकट दिया है. अनंत पर कई केस दर्ज हैं. उनकी छवि क्या है, ये बिहार नहीं, देश जानती है. बलात्कार के दोषी राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को आरजेडी ने नवादा से उम्मीदवार बनाया है. ये वही राजबल्लभ हैं, जो आरजेडी की टिकट पर 2015 में विधायक बने थे. लेकिन, 2016 में नाबालिग से रेप का आरोप लगा और 2018 में दोषी पाए गए और जेल में बंद हैं. आरजेडी ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था. संदेश से विधायक अरुण यादव पिछले 1 साल से फरार चल रहे हैं. उन पर भी एक नाबालिग के साथ बलात्कार का आरोप है, जिसके बाद से भागे चल रहे हैं. इस बार आरजेडी ने उनकी पत्नी किरण देवी को संदेश विधानसभा सीट से प्रत्याशी के तौर पर उतारा है. राजद की टिकट से कई वरिष्ठ नेताओं के पुत्र भी चुनावी अखाड़े में अपनी पारी का आगाज करेंगे, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह, वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी भी हैं.
टिकट बंटवारे की यह तस्वीर क्या कहती है ? क्या यहां परिवारवाद की झलक नहीं दिखती? क्या यहां बाहुबलियों को टिकट नहीं दिया गया? क्या यहां विरासत सहेजने की कशमकश नहीं है? जाहिर है, सबकुछ दिख जाता है. हालांकि, आरजेडी ने अपनी सफाई में प्रत्याशियों पर लंबित आपराधिक मामलों की लिस्ट जारी की है और बताया है कि आखिर इनको टिकट क्यों दिया गया है? फॉर्म सी-7 के तहत जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की गई है.
वैसे बिहार में विधानसभा चुनाव में आरजेडी के अलावा राज्य में अमूमन हर राजनीतिक दल में अपराधियों, भाई-भतीजावाद और बाहबुल का गठजोड़ कहीं न कहीं दिखाई पड़ता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
खैर, सियासत के शतंरज पर, जिन मोहरो के बूते आरजेडी दांव लगा रही है, उसमें वह किला फतह कर पायेगी या नहीं, ये ते चुनाव के बाद मालूम पड़ेगा. वैसे, एक बात तो साफ है कि चाहे आरजेडी, बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी या फिर कोई भी पार्टी हो, अगर उसका फार्मूला वंशवाद, बाहुबली और विरासत के बूते सत्ता की चाबी हासिल करना है, तो उतना आसान नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र के मंदिर में जनता भगवान होती है और वो सबकुछ देख रही है.