डॉ. निशा कुमारी
दिल्ली में एलजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में बड़ा फैसला हुआ. एलजेपी बिहार विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ेगी. लोक जनशक्ति पार्टी केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक में सभी सदस्य मौजूद थे. कोरोना व ऑपरेशन के कारण पशुपती पारस व कैसर वी॰सी॰ के माध्यम से बैठक में जुड़े थे. बैठक में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला लिया गया.
इस बैठक में लोजपा-भाजपा सरकार का प्रस्ताव पारित किया गया. लोजपा के सभी विधायकों ने पी॰एम॰ मोदी को और मज़बूत करने के फैसला पारित किया है. बैठक में कहा गया कि एक साल से बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के माध्यम से उठाए गए मुद्दों पर लोजपा पीछे नहीं हटेगी. पार्टी ने कहा कि भाजपा और लोजपा में कटुता नहीं है, लेकिन जे॰डी॰यू॰ और लोजपा में वैचारिक मतभेद है, जिससे यह फैसला लिया गया है.
अधिक सीटों की चाह में एलजेपी अलग चुनाव लड़ेगी
एलजेपी शुरु से ही बिहार विधानसभा चुनावों में अधिक सीटों की मांग कर रही थी, लेकिन एनडीए में उसे कम सीटें मिल रही थी, जिससे पार्टी ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हालांकि लोजपा चाहती है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े, लेकिन नीतिश कुमार का नेतृत्व उसे स्वीकार नहीं है और केवल बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने से उसे अधिक सीटें भी मिल जाएंगी. एलजेपी केन्द्र में एनडीए के साथ रहेगी और यह अलगाव केवल बिहार विधानसभा चुनावों के लिए हुआ है.
अब आगे एलजेपी की राह कठिन होगी
पीएम मोदी सहित अमित शाह, जेपी नड्डा जैसे बीजेपी के टॉप लीडर्स पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि बिहार चुनाव नीतिश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. ऐसे में बीजेपी केन्द्र में भी एनडीए के अंग के तौर पर एलजेपी को बनाये रखने या नहीं रखने पर विचार कर सकती है, क्योंकि एलजेपी बिहार में बीजेपी के फैसले के विरोध में खड़ी है और दूसरी तरफ केन्द्र में बीजेपी की बहुमत वाली सरकार है.
एलजेपी इतिहास को दोहराना चाहती है
2005 में भी ऐसे ही हुआ था जब एलजेपी ने अलग चुनाव लड़ा था और उसे अधिक सीटें आयी थी तो सत्ता की चाबी मेरे पास है कहने वाले रामविलास पासवान के जिद्द के कारण दुबारा विधानसभा चुनाव करवाने पड़े थे. फिलहाल रामविलास पासवान बीमार हैं, लेकिन चिराग पासवान उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए इतिहास को दोहराने की फिराक में है.