बिहार के 35 साल: नीतीश कुमार का शासन- पार्ट- 2 : बिहार में लालू-राबड़ी युग समाप्त और नीतीश कुमार युग की हुई शुरुआत

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार कुमार केंद्र हैं जो सत्ता में पिछले 20 साल से हैं, यानि मुख्यमंत्री हैं. देश की राजनीति में अहम् भूमिका निभाते हैं. कभी नरेंद्र मोदी से अच्छा मुख्यमंत्री का तगमा हासिल था, लेकिन बीजेपी नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर अब प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी का कद बड़ा हो गया है, जबकि नीतीश वक्त के साथ अब कमजोर होते जा रहे हैं. फिर भी नीतीश कुमार हर बार प्रदेश की सत्ता के केंद्र में रहे हैं.
नीतीश कुमार 2005 से 2014 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. साल 2005 में बिहार में दो बार विधान सभा चुनाव हुए. पहली बार फरवरी में खंडित जनादेश के चलते सरकार का गठन नहीं हुआ. इसके बाद नवंबर में फिर से चुनाव हुए तो फिर लालू-राबड़ी राज का अंत हुआ और नीतीश मुख्यम्नत्री बने.

बिहार में 2005 के नवंबर में हुए दूसरे बार विधान चुनाव परिणाम के बाद लालू-राबड़ी युग का अंत हो गया और इसके बाद नीतीश कुमार युग की शुरुआत हुई. तब से अब तक नीतीश कुमार के हाथ में सत्ता की बागडोर है. वे मुख्यमंत्री भी लगातार बने हुए हैं. हालाँकि बीच-बीच में उन्होंने पाला भी बदला, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्षी नहीं छोड़ी है. यानि पिछले 20 साल से बिहार नीतीश कुमार के युग में रहा है.

बिहार में साल 2005 राजनीति के लिहाज से बड़ी घटना हुई. इस साल दो बार विधान सभा चुनाव हुए. पहला चुनाव फरवरी 2005 में और दूसरा चुनाव अक्टूबर 2005 में चुनाव हुए. फरवरी 2005 चुनाव के नतीजों में पहली बार लालू के किले में पैदा हो चुके दरार का संकेत मिला था. जिस MY समीकरण (मुस्लिम-यादव) के सहारे 15 साल तक लालू प्रसाद ने राज किया, उसमें दरार पड़ गया. यानि MY समीकरण का तिलिस्म टूट गया. पहली दफा लालू के इस मजबूत समीकरण में नीतीश कुमार ने सेंध लगा दिया. इसी के साथ ही लालू-राबड़ी युग का हुआ अंत और नीतीश कुमार युग की शुरुआत हुई. इसी के साथ ही नितीश कुमार ने 24 नवम्बर 2005 से लेकर 24 नवम्बर 2010 तक बिहार में सत्ता संभाली. यानि दो बार लगातार मुख्यमंत्री रहे.

जानिए फरवरी 2005 में विधान सभा चुनाव परिणाम क्या रहा

बिहार में फरवरी 2005 के विधान सभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 75 सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी. चुनाव में आरजेडी 210 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी को 25.07 वोट हासिल हुए और 75 सीटों पर जीत मिली. बिहार में नीतीश की पार्टी जद यू का उभार पहली बार इसी चुनाव से शुरू हुआ. जेडीयू 138 सीटों पर चुनाव लड़ी और 55 सीटें जीतीं, पार्टी की वोटों का प्रतिशत 14.55 रहा. बर्ष 2000 के मुकाबले इस चुनाव में जेडीयू को 17 सीटें ज्यादा मिली. फरवरी 2005 चुनाव में भाजपा 103 सीटों पर लड़ी और 37 सीटें जीती. बीजेपी को 10.7 फीसदी वोट मिला था.

आपको बता दें कि फरवरी 2005 के विधान सभा चुनाव ने लालू परिवार की बिहार की सत्ता से बाहर करने का रास्ता तो बनाया, लेकिन नीतीश कुमार को सत्ता नहीं मिली. इस चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिली. ये साफ हो गया कि रामविलास पासवान के बिना नयी सरकार का गठन नहीं हो पायेगा. यानि सत्ता की चाभी रामविलास के पास थी. सरकार बनाने के लिए लालू यादव ने रामविलास पासवान को मनाया, लेकिन वे मुस्लिम मुख्यमंत्री की जिद को कोई पूरा नहीं कर सके. नतीजा किसी की सरकार नहीं बन पायी. इसके बाद नीतीश कुमार को पूर्ण रूप से सत्ता पर काबिज होने में एक चुनाव और लग गया. ये ‘चुनाव’ महज सात महीने बाद फिर आ गया. फरवरी 2005 मे खंडित जनादेश के बाद बिहार में अक्टूबर 2005 में एक बार फिर चुनाव हुए.

अक्टूबर 2005 के चुनाव में 139 सीटों पर चुनाव लड़कर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 88 सीटें जीतीं, जबकि राजद लालू यादव की पार्टी 175 सीटों पर चुनाव लड़ी और मात्र 54 सीटें जीत पाई. इस चुनाव में बीजेपी भी राजद से आगे रही. जेडीयू के साथ लड़ने वाली बीजेपी 102 सीटों पर लड़ी और 55 सीटें जीतीं. फरवरी 2005 के मुकाबले इस बार राजद को 21 सीटें कम मिली और सत्ता से बाहर हो गयी.

अक्टूवर के विधान सभा चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन विपरीत रहा. मात्र 7 महीने पहले बिहार की सत्ता की चाभी रखने वाले पासवान की पार्टी इस चुनाव में अकेले दम पर (कुछ जगहों पर सीपीआई के साथ समझौता) सबसे ज्यादा 203 सीटों पर चुनाव लड़ी, मगर 10 सीटें ही जीत पाई और उन्हें 19 सीटों का भारी-भरकम नुकसान हुआ. दरसअल पासवान को उम्मीद थी कि फरवरी में जो उन्होंने मुस्लिम मुख्यमंत्री का दांव चला था, उसके बदले में उन्हें लगभग 15 फीसदी मुसलमान वोटों का कुछ हिस्सा तो हासिल होगा, लेकिन बिहार के मुस्लिम मतदाता ने इसे नकार दिया और नीतीश के पक्ष में चले गए. नीतीश कुमार पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षण का भी समर्थन कर चुके थे, इसका सकारात्मक असर पड़ा. पंद्रह साल तक बिहार का शासन लालू-राबड़ी रहा जिसके बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता नीतीश कुमार ने साल 2005 में 24 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में शपथ ग्रहण समारोह हुआ. चुनाव परिणामों में बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से एनडीए को 143 सीटों पर जीत हासिल हुई, जो सामान्य बहुमत से 21 सीट ज़्यादा थी. अकेले जनता दल (यूनाइटेड) ने 88 सीटें जीती जबकि बीजेपी को 55 सीटें मिली हैं. 15 वर्षों से बिहार पर राज कर रहे लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल को करारा झटका लगा और आरजेडी के नेतृव वाले सेक्यूलर डेमोक्रेटिक फ़्रंट की करारी हार हुई.

अक्टूवर चुनाव में जेडीयू से ज्यादा राजद को मिला था वोट

फरवरी 2005 में राजद को 25.07 प्रतिशत वोट मिला तो था, लेकिन 7 महीने बाद अक्टूबर में राजद का वोट प्रतिशत घटकर 23.45 हो गया और उन्हें 21 सीटों का नुकसान हो गया. नीतीश के नेतृत्व में जेडीयू को फरवरी 2005 में 14.55 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं अक्टूबर में जेडीयू को मिलने वाला मत प्रतिशत 20.46 हो गया. इस तरह से जेडीयू का वोट प्रतिशत लगभग 6 फीसदी बढ़ा और पार्टी की सीटों में 33 सीट का इजाफा हो गया. दिलचस्प बात ये रही कि अक्टूबर 2005 के चुनाव में जेडीयू के 20.46 प्रतिशत के मुकाबले राजद का वोट शेयर 23.45 यानी कि लगभग 3 फीसदी ज्यादा था, लेकिन ये वोट जीतने वाले सीटों में तब्दील नहीं हो सका था.

(डॉ. निशा सिंह )

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