दुनिया में बढ़ रहा है भारतीय संस्कृति का महत्त्व- गजेन्द्र शेखावत

प्रोजेक्ट मौसम : भारत के ऐतिहासिक समुद्री प्रभाव के साथ ही इस क्षेत्र में देश की विकसित हो रही भू-राजनीतिक रणनीति को भी प्रतिध्वनित करता है. यह प्राचीन नौवहन मार्गों, बंदरगाह शहर नेटवर्क और तटीय बस्तियों जैसे प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है.

नई दिल्ली: भारत की बढ़ती समुद्री साझेदारी और सुरक्षा पहलों की पृष्ठभूमि में, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय की अंतरराष्ट्रीय पहल ‘प्रोजेक्ट मौसम’ के तहत ‘मानसून: द स्फीयर ऑफ कल्चरल एंड ट्रेड इन्फ्लुएंस’ शीर्षक से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है. सेमिनार का आयोजन एसजीटी विश्वविद्यालय के एडवांस स्टडी इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया के सहयोग से किया जा रहा है. उद्घाटन सत्र में केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। आधार वक्तव्य डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने दिया, जबकि आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत भाषण दिया. इस अवसर पर ‘एशिया’ के शोध निदेशक प्रो. अमोघ राय ने भी अपने विचार प्रकट किए. अंत में, आईजीएनसीए के प्रोजेक्ट मौसम के निदेशक डॉ. अजित कुमार ने गणमान्य व्यक्तियों और अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.

यह सेमिनार समुद्री संपर्कों के माध्यम से हिंद महासागर के देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की खोज करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार, परंपराओं और संबंधों को आकार देने में भारत की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करेगा. यह पहल विशेष रूप से सामयिक है, क्योंकि भारत और फ्रांस ने हाल ही में नई दिल्ली में समुद्री सहयोग वार्ता संपन्न की, जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा के लिए खतरों का आकलन करने और उनका मुकाबला करने के लिए संयुक्त उपायों पर सहमति व्यक्त की गई. इसके साथ ही, भारतीय नौसेना का ‘2025 कैपस्टोन थिएटर लेवल ऑपरेशनल एक्सरसाइज’ (TROPEX) चल रहा है, जो हिंद महासागर में भारत की तैयारियों को प्रदर्शित करता है.

‘प्रोजेक्ट मौसम’ मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करके कनेक्टिविटी और समुद्री साझेदारी को बढ़ावा देने में भारत के निरंतर नेतृत्व को भी रेखांकित करता है, जो यूनेस्को के समुद्री विरासत अध्ययनों (मेरीटाइम हेरिटेज स्टडीज) में योगदान देता है. इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का उद्देश्य भविष्य की नीतिगत बातचीत के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले अकादमिक सहयोग और विरासत संरक्षण के साथ गहन सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देना है.

उद्घाटन सत्र में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “हमारे यहां से लेकर के सेंट्रल एशिया तक, सब देशों के बीच हमारी संस्कृति का प्रभाव निर्विवाद रूप से दिखाई देता है। और उसके चलते जो वृहत्तर भारत की कल्पना है, उसका मूल आधार भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक संपन्नता है. हजारों साल पहले जब दुनिया में बाकी सब देश अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे और एक सभ्यता के रूप में विकसित हो रहे थे, तब भारत समृद्धि के शिखर पर था. अब भारत का सामर्थ्य बढ़ रहा है, भारत की पहचान बदल रही है, भारत की जनशक्ति बढ़ रही है और पूरे विश्व भर में भारत की क्षमताओं का प्रभुत्व नए सिरे से स्थापित हो रहा है. माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत ने आर्थिक दृष्टिकोण से, सामरिक दृष्टिकोण से, तकनीकी दृष्टिकोण से प्रगति की है और आज पूरा विश्व एक बार फिर नए सिरे से भारत की तरफ आशा की दृष्टि से देख रहा है और जब भारत की ये महत्ता स्थापित होती है, तो निश्चित रूप से हमारी सांस्कृतिक महत्ता भी स्थापित होती है.”

आधार वक्तव्य (कीनोट एड्रेस) देते हुए डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि यह संस्कृति ही थी, जिसने भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संबंधों की संरचना को बुना था. वित्तीय संसाधनों के अलावा, हमें बौद्धिक और भावनात्मक, दोनों तरह से निवेश करने की आवश्यकता है. यह केवल सरकारी नीतियों की नही, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया को हमारी लोक-सुलभ चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने की गहरी इच्छा और दृढ़संकल्प की मांग करता है.

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रोजेक्ट मौसम में शुरुआत में 39 देशों की पहचान की गई थी, लेकिन आईजीएनसीए पहले से ही दक्षिण और मध्य एशिया पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्र अध्ययन कर रहा था. आईजीएनसीए में क्षेत्र अध्ययन कार्यक्रम के तहत वृहत्तर भारत की अवधारणा विकसित की गई, जिसका उद्देश्य इन देशों को जोड़ने वाले सांस्कृतिक मार्गों और संपर्कों की खोज और पहचान करना था.

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