बिहार विधान सभा चुनाव 2025 : लालू-नीतीश के चंगुल से बीजेपी- कांग्रेस क्यों नहीं हो रहा है आजाद

Bihar Assembly Election 2025 : बिहार में अगले साल अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा चुनाव होंगे. क्या इस दफे भी नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे या महाग़ठबंधन (राजद-कांग्रेस) के साथ जायेंगे ? नीतीश कुमार के नेत्तृत्व में बिहार में फ़िलहाल एनडीए गठबंधन की सरकार है. बीजेपी कह रही है कि 2025 के बिहार विधान सभा चुनाव में भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा. तो क्या बिहार में बीजेपी में कोई नीतीश कुमार के कद का कोई नेता नहीं है ?

कभी कांग्रेस, बिहार में लालू यादव का वैशाखी हुआ करती थी जो अभी भी है. अब इनकी जगह बीजेपी, नीतीश कुमार की वैशाखी बनी बैठी है. अभी भी बीजेपी को अपने नेताओं पर भरोसा नहीं है कि वे अकेले दम पर विधान सभा चुनाव लड़ सके. 2020 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को (74), जेडीयू को (43) से ज्यादा सीटें मिली, फिर भी नीतीश मुख्यमंत्री बने रहे. लगता है कि अबकी बार 2025 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को नीतीश का ही सहारा लेना पड़ेगा. वजह, बिहार में बीजेपी में कोई नेता नहीं हैं जिनके नाम पर चुनाव लड़ने को तैयारी की जा सके.

बीजेपी इस बार महाराष्ट्र फार्मूला बिहार में लागू करवाने की रणनीति में जुटी है. महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में एकनाथ शिंदे, अजित पवार और बीजेपी साथ मिलकर चुनाव लड़े. बीजेपी को ज्यादा सीटें मिली तो देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया. जबकि एकनाथ शिंदे को वादा किया गया था कि चुनाव में जीतने पर मुख्यमंत्री शिंदे हो होंगे. तो क्या इस दफे अगर नीतीश की पार्टी जदयू की सीटें कम आया तो भी मुख्यमंत्री नीतीश हीं बनेगें ? बिहार में नीतीश कुमार अपनी पार्टी को मजबूत करके एक बार फिर से ज्यादा सीट जीतकर फिर से मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इस क्रम में नीतीश कुमार एक बार फिर से महिला संवाद यात्रा पर जाने वाले हैं. राजनीतिक टीकाकार का कहना है नीतीश भले किसी के साथ मिलकर चुनाव लड़े, लेकिन जब बार्गेनिंग की बात होगी तो वे मुख्यमंत्री पद को नहीं छोड़ेंगे.

जानिए बिहार बीजेपी के नेता, जिनकी पकड़ नहीं है जनता पर

केंद्र में बीजेपी पिछले 11 वर्षों से शासन में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है. बिहार के कई नेता केंद्र में मंत्री भी हैं, लेकिन कोई भी नेता की पकड वोटरों पर नहीं है कि उसे वोट में बदल सके. यही वजह है कि चुनाव में जीतना और अकेले सरकार बनाने में बीजेपी बिहार में सफल नहीं हो पा रही है. बिहार के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा कि अगले महीने तक संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. 30 दिसंबर तक हर जिले में नया बीजेपी अध्यक्ष मिल जाएगा. नीतीश-लालू के विकल्प बने सुशील मोदी अब दुनिया में नहीं रहे. इसके बाद बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता जो सांसद और विधायक तो बन रहे हैं, लेकिन जनाधार इतनी नहीं कि बिहार में नीतीश-लालू के बराबरी का हो और विकल्प बन सके. नीतीश-लालू के विकल्प बने सुशील मोदी अब दुनिया में नहीं रहे. इसके बाद रविशंकर प्रसाद, गिरिराज सिंह, शाहनवाज हुसैन, अश्वनी चौबे, राजीव प्रसाद रूढ़ी, विजय सिन्हा, प्रेम कुमार, सम्राट चौधरी, संजय जयसवाल सरीखे बीजेपी नेताओं में कोई नहीं, जिनका वोटरों से सीधा संवाद हो और मुख्यमंत्री का चेहरा हो. ये नेता जीते हैं जरूर, लेकिन बस अपने क्षेत्र में सीमित हैं. यही बीजेपी की कमजोड़ कड़ी है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस बात को जानती है कि इन नेताओं के भरोसे बिहार फतह करना मुश्किल है. इसलिए बीजेपी नीतीश कुमार पर निर्भर अभी भी है.

2015 में नीतीश कुमार ने कहा था कि बीजेपी के पास न तो कोई नीति है और न ही नीयत

वर्ष 2015 में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार ने बीजेपी पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी इस समय हड़बड़ी में है और उसके पास न तो कोई नीति है और न ही नीयत. बिहार विधान सभा चुनाव में प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने ये बातें कही थी. 2015 में विधान सभा चुनाव अक्टूबर में हुए थे. 5 चरणों में संपन्न चुनावों के परिणाम 8 नवंबर को घोषित किये गये, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी के रूप में सामने आयी और उसने 80 सीटों पर जीत हासिल की. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को 71 सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी 53 सीटों पर विजय प्राप्त करके तीसरे स्थान पर रही थी. बिहार में 2015 में जो विधानसभा चुनाव हुआ था, वो कई मायनों में थोड़ा अलग और दिलचस्प था. अलग इसलिए क्योंकि सालों के यार भाजपा और जदयू इस बार जुदा हो गए थे. दिलचस्प चुनाव था, इसलिए क्योंकि 20 साल बाद दो धुर विरोधी लालू और नीतीश साथ आ गए थे. लालू और नीतीश के इस महागठबंधन में कांग्रेस भी शामिल थी. दूसरी ओर भाजपा, लोजपा और रालोसपा मिलकर लड़ रह थे, वोटिंग हुई. नतीजे आए और सरकार बनी महागठबंधन की, लेकिन दो साल में ही नीतीश लालू से अलग होकर दोबारा भाजपा से जुड़ गए.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025- नीतिश-लालू का विकल्प की तलाश में जनता

15 साल लालू और 20 वर्ष नीतीश. 35 सालों से लालू और नीतीश राजनीति के केंद्र में हैं. करीब एक साल बाद साल 2025 के नवम्बर महीने में बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे. इधर प्रशांत किशोर भी तैयार हैं. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 से पदयात्रा शुरू की थी और 18 जिलों में यात्रा कर चुके हैं. 6000 किलोमीटर की यात्रा पूरी हो चुकी है. कई जनसभाएं प्रशांत किशोर के द्वारा आयोजित की जा रही है और पंचायत में लोगों से संवाद भी किया है. ठीक 2 साल बाद 2 अक्टूबर 2024 को प्रशांत किशोर ने राजनीतिक दल का गठन कर लिया और चुनावी समर में कूद पड़े. उपचुनाव में भी प्रशांत किशोर ने चारों सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए. इसके बाद तिरहुत स्नातक चुनाव में निर्दलीय कैंडिडेट बृजवासी ने ये सीट जद यू से छीन लिया. नीतीश-लालू और प्रशांत कुमार की पार्टी यहाँ पर पिट गयी. जाहिर है बिहार में प्रशांत कुमार की पार्टी जनसुराज आगामी विधान सभा चुनाव में विकल्प बनने की कोशिश कर रही है.

बिहार के राजनीतिक दलों ने किया लंबा संघर्ष

जनता दल का गठन 1988 में हुआ और बिहार में जनता दल को सत्ता में आने में 7 साल लग गए. लालू प्रसाद यादव ने कमान संभाली और 1997 में राष्ट्रीय जनता दल का गठन हुआ. राष्ट्रीय जनता दल भी लंबे समय तक सत्ता में रही. समता पार्टी का गठन 1994 हुआ और सत्ता में आने में समता पार्टी को 11 साल लग गए. नीतीश कुमार ने अपने कई सहयोगियों के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था. भारतीय जनता पार्टी को भी सत्ता में आने में लंबा संघर्ष करना पड़ा और 2005 में भाजपा सत्ता में आई. भारतीय जनता पार्टी का गठन 1980 में हुआ था और पार्टी को सत्ता में आने में लगभग 25 साल लग गए. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार बीजेपी को भी खुश करना चाहते हैं, मुस्लिम नाराज ना हो यह भी दिखाने की कोशिश में है.

अभी भी दो नाव पर सवार हैं नीतीश कुमार

राजनीतिक विश्लेषको का कहना है कि नीतीश कुमार दो नाव पर पैर रख रहे हैं. बीजेपी को भी नाराज नहीं करना चाहते हैं और मुस्लिम नाराज ना हो जाए इसकी भी कोशिश में लगे हैं. वक्फ बोर्ड मामले पर इसलिए मुस्लिम संगठनों से बातचीत के लिए अपने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री को लगाया था. ललन सिंह के साथ सभी की एक बैठक भी करवाई थी. जो भी चिंता उनकी है उसे दूर करने की कोशिश की गई है, लेकिन इसका बहुत ज्यादा असर अभी तक वक्फ बोर्ड के स्टेक होल्डर पर नहीं हुआ है.

कास्ट लीडर्स के बारे में भी जानिए जो नीतीश-लालू के विकल्प में निभाते हैं अपनी भूमिका

जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, मुकेश सहनी, पशुपति पारस बिहार में अपनी पार्टी के बदौलत किंगमेकर की भूमिका में रहते हैं. इस बार चुनाव में राजद मुस्लिम-यादव नहीं ए टू जेड फार्मूला आजमाएगी, जबकि पिछड़ा, अति पिछड़ा से सहारे नीतीश अपनी चाल चलेंगे. बीजेपी इस दफे भी नीतीश कुमार के सहारे लड़ेंगे. सबकी निगाहें महादलित वोटर्स पर टिकी हुई है. 2025 चुनाव से पहले क्या नीतीश फिर यू टर्न लेंगे. नीतीश-लालू की पार्टी फिर साथ में चुनाव लड़ेंगे.

2025 चुनाव में क्या होंगे चुनावी मुद्दा ?

1.जातिगत जनगणना
2.बेरोजगारी
3.पलायन
4.लॉ एंड आर्डर
5.जमीन सर्वे
6.आरक्षण पर 50% की सीमा को हटा देंगे

(डॉ. निशा सिंह)

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