जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश, इतिहास में पहली बार पिता के बाद बेटा बना सीजेआई

50th Chief Justice of India DY Chandrachud

दिल्ली : डॉ. निशा सिंह

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) बुधवार को देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हे पद एवं गोपानियता की शपथ दिलाई. भारत के न्यायिक इतिहास में यह पहली बार हुआ है, जब पहले मुख्य न्यायाधीश रह चुके शख्स के बेटे ने भी चीफ जस्टिस पद की शपथ ली है. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल का होगा और वे 10 नवंबर 2024 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की शिक्षा और कार्य अनुभव

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री लेने के बाद स्कॉलरशिप पर हावर्ड पहुंचे और मास्टर्स इन लॉ (एलएलएम) के साथ डॉक्टरेट इन जूडिशियल साइंसेस की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश, दिल्ली के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रहे. 1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया. वो 1998 से 2000 एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) भी रहे. मार्च 2000 में वो बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किए गए. अक्टूबर 2013 में वो इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने.

पिता वाईवी चंद्रचूड़ बने थे देश के 16वें मुख्य न्यायाधीश

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (वाईवी
चंद्रचूड़़) 1978 में देश के 16वें न्यायाधीश बने थे और सात साल इस पद पर रहे थे. ये किसी मुख्य न्यायाधीश का सबसे लंबा कार्यकाल है. पिता के रिटायर होने के 37 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सीजेआई बनने जा रहे हैं.

पिता का फैसले पलटने वाले जज हैं डीवाई चंद्रचूड़

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपने पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसलों को पलटने के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने निष्पक्षता और पारदर्शिता को न्यायिक प्रणाली के लिए अहम मानते हुए पूर्व सीजेआई और अपने पिता की पीठ द्वारा दिए गए व्यभिचार व मौलिक अधिकार के फैसलों को पलट दिया था. संविधान के तहत मिले अधिकारों की व्याख्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार कानून को मौलिक अधिकार बताया था. इस फैसले में सर्वाधिक चर्चा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की हुई थी, क्योकि इस फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ द्वारा 31 वर्ष पूर्व दिए फैसले के खिलाफ अपना फैसला दिया था. अपने फैसले में जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ ने लिखा, “निजता का अधिकार संविधान में निहित है, ये अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से निकल कर आता है.”

एडल्ट्री को लेकर बेटे ने पिता के फैसले को पलटा था

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के द्वारा एडल्ट्री पर दिए फैसले को भी पलटते हुए असंवैधानिक माना था. बता दें कि 1985 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला, इसलिए महिला के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती थी. इसी कानून को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया गया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है. इस बेंच में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है, लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे?

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